भाषा-साहित्य

राज के अमृत महोत्सव पर हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों को अनुपम भेंट- हिन्दी में चिकित्सा शिक्षा

स्वराज के अमृत महोत्सव पर मोदीजी की प्रेरणा से मध्य प्रदेश सरकार का यह साहसिक निर्णय निश्चित ही समूचे भारत की चिकित्सा शिक्षा की दिशा को एक नया आयाम देगा, जिसके तहत इस वर्ष से चिकित्सा शिक्षा का माध्यम हिन्दी किया जा रहा है, यह निर्णय प्रशंसनीय, अनुकरणीय, वन्दनीय और सराहनीय है I

यह हिन्दी के उत्थान का स्वर्णिम अध्याय होगा, यह कथन अनुचित है, यह निर्णय संस्कृत-पुत्री हिन्दी की अपार शब्द-सम्पन्नता, अनुपम क्षमता, और अभिव्यक्ति की सरलता-सहजता के प्रति बहुप्रतीक्षित आदरांजलि होगी,साथ ही यह उन सभी प्रतिभासम्पन्न विद्यार्थियों के जीवन का स्वर्णिम अध्याय होगा, जिनकी मातृभाषा हिन्दी है, ऐसे विद्यार्थी दशकों से अंगरेजी की दासता के चलते अपनी प्रतिभा का गला घूंटते हुए देखने को विवश थे और उनके अभिभावक अपने हृदयों में रक्त के आंसुओं से रुदन करते रहे हैं I

हिन्दी में चिकित्सा शिक्षा के पक्ष में सबसे बड़ा कारण यह है कि हम 74 वर्षों के उपरान्त भी अपने उन 71% प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को अनदेखा करते रहे हैं, जो प्राथमिक और उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों से अपनी-अपनी भाषा में पढ़कर, प्रतिस्पर्धी परीक्षा में अपनी बुद्धिमत्ता, बौद्धिक क्षमता, और अनथक परिश्रम के उपरान्त चिकित्सा शिक्षा के पाठ्यक्रम हेतु चयनित होते रहे हैं I वास्तव में यह विस्तृत अध्ययन होना चाहिए था कि ऐसे बच्चें जब मेडिकल कॉलेजों में आते हैं तो उन्हें अपने शिक्षकों के व्याख्यान कितने समझ में आ पाते हैं, उन्हें जो पढ़ाया गया है, उसे समझने में अन्य विद्यार्थियों की अपेक्षा कितने अधिक घण्टों का बलिदान करना पड़ता है, कितने विद्यार्थी निराशा के घनघोर अन्धेरों में अकेले रोते रहे हैं I मुझे अच्छी तरह से स्मरण है कि मुझसे दो साल कनिष्ठ एक छात्र, जिसकी पीएमटी में आठवीं रैंक आई थी और उसका अपने शहर में अच्छा स्वागत हुआ था, वह अंगरेजी भाषा के जंजाल में ऐसा उलझा कि एम.बी.बी.एस. की प्रथम परीक्षा में असफल होकर अपने साथियों से हमेशा के लिए छह माह पीछे होने के साथ-साथ कई महीनों तक अवसाद से निकल नहीं पाया था I विद्यार्थी कल्याण समिति का पच्चीस वर्षों तक पदाधिकारी रहने के कारण मैंने अपने सेवाकाल में ऐसे ही डेढ़ सौ से अधिक विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों की पीड़ा को निकट से देखा है I हिन्दी माध्यम से आए और अन्य कारणों से पिछड़े विद्यार्थियों की परिणाममूलक विशेष कोचिंग में अपनी तत्कालीन विभागाध्यक्ष डॉ. सुखवंत बोस का सहयोगी होने के कारण मुझे ऐसे विद्यार्थियों की कठिनाइयों का ज्ञान और भान है I

क्या यह पहल मेडिकल विद्यार्थियों के लिए प्रतिगामी सिद्ध होगी: मेडिकल कॉलेज इन्दौर में सम्पन्न एक सर्वेक्षण से यह बात सामने आई थी कि एम.बी.बी.एस. की वार्षिक परीक्षाओं में मेरिट में आने वाले विद्यार्थियों में हिन्दी माध्यम वालों का वर्चस्व रहता है, हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों ने अंगरेजी माध्यम से आए विद्यार्थियों को पीछे छोड़ा था l इसका यह निष्कर्ष भी है कि मातृभाषा में पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों के लिए अंगरेजी अथवा अन्य भाषा सीखना बहुत दुसाध्य कार्य नहीं होता है, प्रसिद्ध समाचार पत्र ने “हिन्दी से हारी अंगरेजी” शीर्षक से मुखपृष्ठ पर यह समाचार छापा था I इसलिए हिन्दी माध्यम से चिकित्सा शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थी विदेशों में सेवा देने की अथवा वैज्ञानिक सम्मेलनों में सहभागिता सफलतापूर्वक कर सकेंगे I अतएव हिन्दी में चिकित्सा शिक्षा को प्रतिगामी निर्णय निरूपित करना  अनावश्यक और तर्कहीन है I जहां तक हिन्दी में मेडिकल की शिक्षा लेकर बनें चिकित्सक अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में जाएंगे तो क्या होगा? वर्तमान में अंगरेजी में पढ़ें चिकित्सकों की पदस्थी जिस भी राज्य या क्षेत्र में भी होती है, वे उस क्षेत्र की स्थानीय भाषा और बोली को सीख लेते हैं और रोगियों से संवाद करते हैं, अंगरेजी में नहीं I मध्य प्रदेश से दीक्षित चिकित्सक ऐसा नहीं है कि तमिलनाडु, केरल, गुजरात अथवा महाराष्ट्र में पदस्थ होने पर रोगियों से मूक संवाद अथवा संकेतों की भाषा में रोग विषयक विस्तृत जानकारी लेते हैं और उनका उपचार करते हैं I

यह भी ज्ञातव्य है कि राष्ट्रीय स्तर की प्रेपलैडर प्रीपीजी कोचिंग के व्याख्यानों के वीडियोज हिंगलिश में उलब्ध करवाए जाते हैं, हिन्दी की उपयोगिता का इससे बढ़कर उदाहरण कदाचित नहीं मिलेगा I किसी ख्यात कोचिंग में एम.बी.बी.एस. स्नातक विद्यार्थियों को विभिन्न विषयों के व्याख्यान के वीडियोज अंगरेजी के अतिरिक्त हिंगलिश में भी उपलब्ध करवाती है, कोई भी संस्थान बिना मांग के वीडियोज बनाने में धन खर्च नहीं करेगा I व्यावसायिक संस्थान तक समझते हैं कि ज्ञान को आत्मसात करने की अधिकतम क्षमता मातृभाषा में होती है, जबकि प्रीपीजी की परीक्षा केवल अंगरेजी में ही होती है I

 

यह सच है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में चिकित्सा शिक्षा का हिन्दी में रूपान्तरण का कार्य अत्यन्त कठिन था और मध्य प्रदेश शासन के दृढ निश्चय के कारण यह निकट भविष्य में साकार होने वाला है, कार्य अन्तिम दौर में है I यह तो हिन्दी भाषी प्रदेशों की सरकारों का  बहुप्रतीक्षित नैतिक दायित्व था कि ऐसे विद्यार्थियों की प्रामाणिक प्रतिभा को बिखरने ना दें, बल्कि निखारने और संवारने का पुनीत कार्य करें, जिनकी शालेय शिक्षा का माध्यम हिन्दी रहा है I

वर्तमान में हिन्दी में तैयार की जा रही पुस्तकों में टेक्नीकल शब्दों को जस का तस देवनागरी में लिखा गया है और उसकी स्पेलिंग कोष्ठक में दी गई है, इसलिए भी विद्यार्थियों का टेक्नीकल शब्दों के कठिन अनुवादों से पाला नहीं पड़ेगा I जैसे हीमोग्लोबिन को रक्त रंजक नहीं लिखा गया है, न्यूरान को तंत्रिका कोशिका लिखने से बचा गया है, मेम्ब्रेन को झिल्ली नहीं बताया गया है, इससे यह लाभ होगा कि विद्यार्थी यदि अंगेरजी पुस्तकों को भी पढता है तो उसे विषय बोधगम्य लगे I    

 

यह बात हमको अपने मन-मस्तिष्क में धारण करना होगी कि विश्व की अधिकाँश भाषाएं संस्कृत से जन्मी हैं I विकिपीडिया इस तथ्य का प्रमाण है I इंडो-यूरोपीय भाषाएं, पुरातन और शास्त्रीय लैटिन (600 ईसा पूर्व), इटैलिक भाषाएं, गोथिक (पुरातन जर्मनिक भाषा) ओल्ड अवेस्तान और वर्तमान अवेस्तान भी (900 ईसा पूर्व) संस्कृत से जन्मी है । What Languages Are Derived From Sanskrit?

“Sanskrit’s geographical influence is seen in India, South Asia, and South east Asia, Tibet, China, Korea and Japan. Sanskrit is related to Greek and Latin, with similarities in phonetics, grammar, and script.” https://www.worldatlas.com/articles/what-languages-are-derived-from-sanskrit.html#:~:text=Sanskrit%E2%80%99s%20geographical%20influence%20is%20seen%20in%20India%2C%20South%20Asia%2C%20South,Greek%20and%20Latin%2C%20with%20similarities%20in%20phonetics%2C%20grammar%2C%20and%20script

यह हमारे लिए अत्यन्त गौरव का विषय है कि ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी में पांच हजार शब्द हिन्दी के जस के तस लिए गए हैं I यह भी की हमारी भाषा के पास करोड़ों शब्दों की सम्पदा है I

भगवान राम के छोटे भाई भरत के पुत्र तक्ष द्वारा स्थापित, तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के साढ़े दस हजार विद्यार्थी विद्यार्जन करते थे, उस विश्वविद्यालय के ग्रंथालय को जब मुग़ल आततायियों ने जलाया तो सवा महीने तक आग जलती रही, इसके साथ ही लाखों पुस्तकों में समाहित ज्ञान अग्नि में भस्मीभूत हो गया I

भाषा, भूषा और भोजन किसी भी देश का आत्मगौरव होता है, और भाषा ही अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहरों के पीढ़ी दर पीढ़ी के सगर्व हस्तान्तरण हेतु अधिक सक्षम होती है, वर्तमान में अंगरेजी माध्यम की शिक्षा के कारण हाथ जोड़ने, दीप प्रज्ज्वलित करने जैसी अनेकानेक विज्ञानसम्मत परम्पराओं को त्यागकर, हाथ मिलाने, दीप बुझाने और हे भगवान के स्थान पर ओह शिट (टट्टी) जैसी परम्पराओं को आत्मसात कर चुके हैं I मातृभाषा किसी भी व्यक्ति, समाज, संस्कृति या राष्ट्र की पहचान होती है l वास्तव में भाषा एक संस्कृति है, उसके भीतर भावनाएं, विचार और सदियों की जीवन पध्दति समाहित होती है l मातृभाषा ही परम्पराओं और संस्कृति से जोड़े रखने की एक मात्र कड़ी है l राम-राम या प्रणाम आदि सम्बोधन व्यक्ति को व्यक्ति से तथा समष्टि से जोड़ने वाली सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ हैं l

समूचे विश्व के सम्भवत: मात्र पांच देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, कनाडा तथा न्यूजीलैण्ड) के अतिरिक्त सभी देश उच्च शिक्षा और आधुनिक चिकित्सा शिक्षा का अध्यापन अपनी-अपनी भाषाओं में करते हैं I जिस भी देश ने अपनी भाषा को महत्व दिया, वह अंग्रेजी के कारण पीछे नहीं रहा। इजरायल, चीन, रूस, फ़्रांस, जर्मनी और जापान इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं I यहाँ तक कि पुर्तगाल, स्पेन, इटली, हालेण्ड आदि देशों में भी उच्च शिक्षा अपनी-अपनी भाषाओं में दी जाती है I रूस ने जब अपना पहला अंतरिक्ष यान स्पुतनिक अंतरिक्ष में भेजा था तब अमेरिका में तहलका मच गया था। उस समय रूस में विज्ञान और तकनीक के जर्नल केवल रूसी भाषा में प्रकाशित होते थे। पश्चिमी देशों को स्वयं उनके अनुवाद तथा प्रकाशन का उत्तरदायित्व लेना पड़ा। इन देशों की वैज्ञानिक प्रगति अंग्रेजी भाषा पर निर्भर नहीं रही। ये सभी देश नये-नये आविष्कार कर रहे है। लेकिन विश्व को ज्ञान-विज्ञान, गणित, योग, आध्यात्म देकर जगदगुरु कहलाने वाले देश के अधिकाँश उच्च शिक्षित नागरिक विदेशी भाषा पढ़ कर कोई आविष्कार करना तो दूर की बात अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को अन्धविश्वास कहने में गौरव का अनुभव करते हैं I इस मिथ्या चक्रव्यूह से हमें निकलना पड़ेगा I

गांधीजी ने एक बार यह स्पष्ट शब्दों में कहा था कि हिन्दी ह्रदय की भाषा है और राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है I हिन्दी भाषा का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है I भारत लौटने के कुछ ही समय उपरान्त सन 1918 में महात्मा गांधी ने इन्दौर के हिन्दी साहित्य सम्मेलन में कहा था, “जैसे ब्रिटिश अंग्रेजी में बोलते हैं और सारे कामों में अंग्रेजी का ही प्रयोग करते हैं, वैसे ही मैं सभी से प्रार्थना करता हूं कि हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा का सम्मान अदा करें, इसे राष्ट्रीय भाषा बनाकर हमें अपने कर्तव्य को निभाना चाहिए I”

महान साहित्यकार श्री हजारीप्रसाद द्विवेदी ने कहा था कि भगवान भी उसे क्षमा नहीं कर सकते हैं, जो व्यक्ति अपनी माँ को छोड़कर दूसरे की माँ की सेवा करता है I

आज जबकि हम स्वतन्त्रता के अमृत महोत्सव के भव्य समारोहों की तैयारी कर रहे हैं, और हमारी चिकित्सा शिक्षा अभी भी पराश्रित है, यह अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है I यदि हम भारतीय भाषाओं में चिकित्सा शिक्षा का विरोध करते हैं तो कहीं न कहीं हमारे मन-मस्तिष्क में स्वयं की क्षमता, दक्षता एवं अपनी भाषा और संस्कृति की अनुपम क्षमता और विराट सम्पदा के प्रति संशय की स्थिति है I वस्तुत: यह संशय निराधार है, दीपक के प्रज्ज्वलित होते ही संशय का अन्धकार भी स्वत: अदृश्य हो जाएगा I मेरा दावा है कि यदि भारत सरकार हिन्दी में चिकित्सा शिक्षा का व्यापीकरण करते हुए, एम.बी.बी.एस. के पाठ्यक्रम में वेदवर्णित आश्वासन चिकित्सा, वायु चिकित्सा, स्पर्श चिकित्सा, मन्त्र चिकित्सा, सूर्य किरण चिकित्सा, भोजन चिकित्सा, अभ्यंग चिकित्सा, योग, प्राणायाम और ध्यान, आस्था अथवा अध्यात्म चिकित्सा, प्रार्थना चिकित्सा, अग्निहोत्र चिकित्सा, अवचेतन मन की अपार शक्ति से उपचार आदि विधाओं का समावेश कर लेती है तो विदेशी सरकारें उनका अनुवाद अपनी-अपनी भाषा में करवाने लगेंगे, साथ ही वहां के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने भारत आने लगेंगे I ये सभी औषधिविहीन, निरापद और विज्ञानसम्मत सह चिकित्साएं हैं तथा इनका अध्यापन मात्र दो-तीन सप्ताह में सम्भव है, साढ़े पांच वर्ष की अवधि में दो-तीन सप्ताह सरलता-सहजता से निकालें जा सकते हैं I इस दावे का प्रमाण भी है, जब “वार एंड पीस” पुस्तक की प्रशंसा करते हुए गांधीजी ने टालस्टायजी से पूछा कि इतना ज्ञान आपने कहाँ से पाया तो पूर्व में सैनिक रह चुके और शान्ति की तलाश में डूबे हुए श्री लेव निकोलायेविच टालस्टाय, जिन्हें गांधीजी अपना गुरु मानते थे, ने कहा कि मैंने सारे वेद और पुराण जर्मनी भाषा में पढ़े हैं और वही ज्ञान मेरे लेखन में झलकता है I

 

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार मातृभाषा

 

  • मनोवैज्ञानिकों की यह स्पष्ट मान्यता है कि सम्प्रेषण की भाषा वही होना चाहिए ,जिस भाषा मे वह सोचता है, विचार करता है, स्वप्न देखता है और आक्रोशित होने पर जिस भाषा में अपशब्दों का प्रयोग करता है l वे मानते हैं कि इससे संप्रेषणीयता सटीक और सहज तो होती ही है,साथ-साथ व्यक्ति की ग्रहण क्षमता और कार्य क्षमता भी अधिक होती है l
  • मातृभाषा विद्यार्थी को आत्मविश्वासी और योग्य बनाती है l
  • मातृभाषा में पढ़ाई से कक्षाओं में शिक्षक–विद्यार्थी एवं विद्यार्थी–विद्यार्थी के मध्य पारस्परिक ज्ञान विनिमय (एक्सचेंज ऑफ नालेज) ज्यादा होता है l
  • अध्ययनों से ज्ञात हुआ कि मातृभाषा में पढ़ रहे विद्यार्थी ज्यादा जिज्ञासु (क्युरियस) होते हैं और विषय की ग्राह्यता (आत्मसात) भी श्रेष्ठतर होती है I
  • मातृभाषा से दूर करने पर विद्यार्थियों के ज्ञानार्जन पर अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है l
  • वास्तव में शिक्षा के अधिकार का प्रश्न मातृभाषा में शिक्षा के साथ जुड़ा है। अपनी भाषा में शिक्षा प्राप्त करना बच्चे का अधिकार है, उस पर दूसरी भाषा लाद देना उसके स्वाभाविक विकास में बाधा डालना भी है l
  • Former President Bharat Ratna late Dr.A P J Abdul Kalam has said that science education should be imparted to children in vernacular languages to bring creativity and enable easy grasp of the subject.
  • Interacting with students at the Dharampeth Science College, Nagpur during its golden jubilee function here last night, Kalam said, “I studied up to tenth standard through vernacular medium and later picked up English.“
  • He advised teachers to bring out creativity in children and teach them science in their mother-tongue.
  • महान भाषावादी और अमेरिका में लिंगविस्टिक सोसाइटी के संस्थापक लियोनार्द ब्लूमफिल्ड ने पाणिनि अष्टाध्यायी के अध्ययन के बाद कहा था कि “संस्कृत मानवीय बुद्धिमता का महानतम मन्दिर है I” यूनेस्को ने भी मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में “संस्कृत वैदिक जाप” को जोड़ने का निर्णय लिया है, यूनेस्को ने माना है कि संस्कृत में जाप से शरीर और मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है
  • मेडिकल स्टूडेंट फ्रांसेस्का लुनारी (जो अब चिकित्सक बन चुके हैं) मैं यह जानने – समझने के लिए संस्कृत सीख रहा हूँ, ताकि मानवीय विचारों के मूल का मनोविश्लेषण कर सकूं I हम जानते हैं कि हिन्दी भी संस्कृत से निस्रत एक बड़ी धारा है I
  • संस्कृत दुनिया की अकेली ऐसी भाषा है, जिसे बोलने में जीभ की सभी मांसपेशियों का उपयोग होता है I
  • नासा के शोधकर्ता श्री रिक ब्रिग्स ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मैगज़ीन में लिखा है कि “भारत के प्राचीन समय के ज्ञानी, सत्य की खोज में इतने समर्पित थे कि उन्होंने इस उद्देश्य के लिए एक सटीक उपकरण का प्रयोग किया – यानी कि “संस्कृत” भाषा का ।
  • संस्कृत की व्याकरण एवं संरचना ऐसी है कि उसके व्याख्यान मात्र से ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रणाली भाषा के अभिप्राय को आसानी से समझ सकती है । आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में होने वाली आधुनिक रिसर्च का मूल हज़ारों वर्षों पूर्व “संस्कृत” में सन्निहित है।’’
  • शिक्षा के माध्यम पर अमेरिकी विदेश मंत्री (तत्कालीन) हिलेरी क्लिंटन का कहना था कि बच्चों को उन्हीं की मातृभाषा में पढ़ाया जाना चाहिए I
  • पाकिस्तान की प्रोफ़ेसर इरफ़ाना मल्लाह का कहना है कि मातृभाषा में आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने से बच्चों की रचनात्मक क्षमताओं में वृद्धि होती है जबकि दूसरी भाषाओं में आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों की यह क्षमता सीमित हो जाती है। इरफ़ाना का कहना है कि जो बच्चे विदेशी भाषाओं में शिक्षा ग्रहण करते हैं, वह अपने इतिहास और सभ्यता से दूर हो जाते हैं।

चिकित्सा शिक्षा हिन्दी में हो इसके लिए पूर्व में किए गए प्रयास

  • सन १९९१ में प्रोफेसर मुकुल चंद्र पांडेय की अध्यक्षता में गठित चिकित्सा और परा चिकित्सा शिक्षा हिन्दी माध्यम समिति ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में हिन्दी के पक्ष में सशक्त तर्क रखते हुए हिन्दी की अनुशंसा करते हुए केन्द्र सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी l
  • राजस्थान में समय-समय पर कर्म भारती संस्था के मार्गदर्शन में आन्दोलन हुए, जिसमें भारत वर्ष के अहिन्दीभाषी प्रदेशों के लोगों ने सहभागिता की l आठ मार्च १९९१ को सचिवालय के सामने सत्याग्रह किया गया l
  • जुलाई १९९८ में भी एक बड़ा आन्दोलन हुआ था l
  • फरवरी २००८ में वाराणसी में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न हुई, जिसमें अनेक चिकित्सा-शिक्षकों ने हिन्दी में चिकित्सा-शिक्षा देने की सहमति देते हुए, सरकार से अनुरोध किया कि कम से कम एक मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा शिक्षा हिन्दी में प्रारम्भ की जाए l उन्होंने यह बात जोर देकर कही कि पुस्तकों की प्रतीक्षा नहीं की जाए l पुस्तकें तो आवश्यकता के साथ-साथ तैयार होने में देर नहीं लगेगी l
  • हिन्दलिश किए जाने से हुआ था, चमत्कार: एक छोटे-से प्रयोग से यह बात सामने आई है कि इस दिशा में उठाए गए छोटे कदम भी कितने अधिक फलदायी होते हैं I हिन्दी दिवस, 2018 को मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर के पूर्व कुलपति डॉ. आर.एस. शर्मा सर ने विद्यार्थियों के हित में यह घोषणा की थी कि वे उत्तरपुस्तिकाओं में हिंगलिश में लिख सकेंगे, इस निर्णय के विषय में उन्होंने पत्रकारों के समक्ष मेरी भूमिका को भी श्रेय दिया था I कालान्तर में अध्ययन करने पर ज्ञात हुआ था कि उस साहसिक निर्णय के परिणाम सकारात्मक रहे और मेडिकल, डेन्टल और बीपीटी विद्यार्थियों को परीक्षा परिणामों में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए थे I

डॉ. मनोहर भण्डारी