है सुबह सुंदर सुहानी मिट गया तम है।
शीतला -सुरभित हवा के संग मौसम है।।
भर रहा उर -ओज यह रतनार दिनकर है।
है धरा -धानी ,शिखर का दृश्य मनहर है।।
पंछियों का स्वर- मधुर मन को लुभाता है।
कौन जो यह घट लिए जीवन लुटाता है।।
कौन आकर फूल को नित रंग देता है।
कौन तितली को अनोखा ढंग देता है।।
कौन देता है खगों को गुड़ -पगी बोली।
क्यों सजाती भोर प्राची रोज रंगोली।।
साथ देता जलधरों का कौन ये होले।
सन्दली पागल हवा कैसा नशा घोले।।
— रागिनी स्वर्णकार शर्मा