सैनिक की बेटी
ओ पापा
जब नन्ही सी बिटिया थी,
कभी घर आते
आकर चले जाते,
गोद की तरसते रह जाते,
सबके पापा कितने अच्छे होते
एक मेरे जो बुरे ऐसा ही समझते,
माँ से सवाल करती
वो आड़ में रो लेती,
बेटे जल्द आयेगे
आंख सड़क पर होता
कब पापा आयेगे
बहुत शिकायत की लिस्ट
सब एक करके बतायेंगे,
ये पापा लोग सेना क्यो जाते
पापा आते और जाते
वक्त की सतह पर
कोई ठहराता क्या
एक दिन ढेर सारी गाड़ी
घर पर आ गई,
खुशी से समाकर दौड़ी
दादी के किस्से में जो सुनी
कहानी बिलकुल वैसा दौर
सब गमसीन थे,
सामने तिरंगा पर लिपटे पापा जी
माँ की मानो दुनियां लुट गई,
मैं दौड़कर खुशी से सिमट गई
लोग और ज्यादा भावुक उठे
छोटी से मन में ना जाने क्या
उस वक्त चल रहा था,
बयां ना कर सकी।
— अभिषेक राज शर्मा