राजनीति

अग्निवीर या अंग्रेजीवीर ?

पिछले दिनों सेना में जवानों की भर्ती संबंधी भारत सरकार की अग्निवीर योजना पर खासा बवाल हुआ। अधिकांश विपक्षी दलों ने इसका जमकर विरोध किया और कई राज्यों में कई दिनों तक हिंसक घटनाओं में देश जलता रहा। लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर देशवासियों ने इसका मुखर या मौन समर्थन ही किया। जिन लोगों को इस योजना की पूरी जानकारी नहीं थी, जानकारी मिलने पर उनका विरोध भी खत्म हुआ। सरकार ने युवाओं की चिंताओं पर ध्यान देते हुए उनके रोजगार के लिए सुरक्षाबलों और सरकार में रोजगार की व्यवस्था के आश्वासन दिए। इसके साथ-साथ देश की कई बड़ी कंपनियों ने भी सेवानिवृत्त होने वाले अग्निवीरों को अपनाया रोजगार देने की बात कही।

लेकिन अब जो बात निकल कर आ रही है कि सेना में भर्ती के लिए अग्निवीरों की वीरता यानी शारीरिक मानसिक क्षमता से अधिक अंग्रेजी की परीक्षा पर ज्यादा जोर है। यह सर्वविदित है कि सेना और सुरक्षा बलों में ज्यादातर जवान ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं जहां अंग्रेजी का कोई वातावरण नहीं होता। ऐसे में अग्निवीर भर्ती योजना के अंतर्गत अंग्रेजी को अत्यधिक महत्व दिया जाना किसी भी दृष्टि से उपयुक्त प्रतीत नहीं होता। देश के जवानों के लिए देश की भाषा के बजाए गुलामी की भाषा को इतना महत्व देना स्वाधीनता, स्वतंत्रता और राष्ट्रीय स्वाभिमान के अनुकूल नहीं है। जवानों को युद्ध में दुश्मन से अंग्रेजी में बात नहीं करनी बल्कि लड़ना है। यह भी कि जवानों को अंग्रेजी बोलनेवाले अधिकारियों की नहीं बल्कि सैन्य अधिकारियों को जवानों की भाषा सीखनी-बोलनी चाहिए। हमारी सेना अंग्रेजों की नहीं बल्कि स्वाधीन भारत की सेना है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत के संविधान निर्माताओं ने अंग्रेजी को नहीं बल्कि हिंदी को भारत संघ की राजभाषा बनाया है जो इस देश के जनमानस की और राष्ट्रीय संपर्क की भाषा भी है। इस विषय को लेकर श्री हरपाल सिंह राणा जो कि निरंतर भारतीय भाषाओं के लिए संघर्ष करते रहे हैं उन्होंने राष्ट्रहित और जनहित में भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को अपनी शिकायत भेज कर विरोध व्यक्त किया है और इस विषय में पुनर्विचार का अनुरोध भी किया है।

होना तो यह चाहिए कि सभी अग्निवीरों को जो हिंदी नहीं जानते हैं उन्हें भी हिंदी लिखने पढ़ने में पारंगत किया जाए ताकि राष्ट्रीय स्तर पर सेना में संपर्क की भाषा के रूप में हिंदी विकसित हो और सेवानिवृत्ति के पश्चात ये अग्निवीर देश में स्वतंत्रता सेनानियों की अपेक्षाओं के अनुरूप राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार का माध्यम बन सकें।

सरकारी व्यवस्था में सेना में और अफसरशाही में अंग्रेजी का इतना अधिक वर्चस्व है कि उन्हें यह समझ नहीं आता कि भारत की संपर्क भाषा राजभाषा हिंदी है न कि अंग्रेजी और गांवों में रहने वाले बच्चे अंग्रेजी के विद्वान नहीं हैं। मा. रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी से भी अनुरोध है कि वे इस संबंध में व्यक्तिगत स्तर पर ध्यान दे कर अग्निवीर भर्ती में अंग्रेजी ज्ञान को इतना महत्व देने के बजाए हिंदी और मातृभाषा ज्ञान पर जोर दें । यब भारत सरकार की नई शिक्षा नीति के भी अनुरूप होगा।

सभी भारतीय भाषा प्रेमियों को यह मुद्दा उठाना चाहिए कि भारत सरकार अग्निवीर योजना के अंतर्गत की जाने वाली भर्तियों में अंग्रेजी के बजाए हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को महत्व दें।

— डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’
निदेशक, वैश्विक हिंदी सम्मेलन

डॉ. एम.एल. गुप्ता 'आदित्य'

पूर्व उपनिदेशक (पश्चिम) भारत सरकार, गृह मंत्रालय, हिंदी शिक्षण योजना एवं केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण उप संस्थान, नवी मुंबई