मत चूकै चौहान…
शीर्षक से ही आप लोग जान गए होंगे, कि आज हम चौहान की बात करने वाले हैं. चौहान के नाम से आपको पृथ्वीराज चौहान की याद आ गई होगी. उस चौहान के अलावा भी आज हमारी छोटी-सी पिटारी में बहुत-से चौहान भरे पड़े हैं. आप सोच रहे होंगे, छोटी-सी पिटारी में बहुत-से चौहान कैसे समा सकते हैं. असल में ये चौहान हीरे हैं और हीरे छोटे होते हुए भी बेशकीमती होते हैं. तो पहले संक्षेप में उसी पौराणिक-ऐतिहासिक पृथ्वीराज चौहान की बात कर लेते हैं.
हिंदू क्षत्रिय राजा पृथ्वीराज चौहान की सेना ने गौरी की सेना के छक्के छुड़ा दिए. पृथ्वीराज चौहान ने सुलतान मुहम्मद गौरी को 17 बार खदेड़ दिया. पृथ्वीराज चौहान चाहते तो गौरी को मार भी सकते थे, बंदी भी बना सकते थे. राजपूताना की प्रथा है, कि वो निहत्थे दुश्मन पर हमला नहीं करते थे, इसी का फयदा उठाकर गौरी बार-बार बचता गया. यहां देश का एक गद्दार जयचंद गौरी के काम आया. उसने राजपूतों के सभी भेद खोल दिए और गौरी की खुल कर मदद की. भयंकर युद्ध के बाद चौहान तथा राज कवि चंदबरदाई को बंदी बना लिया गया. गौरी के राजदरबार में तीरंदाजी कौशल को प्रदर्शित करने के दौरान चंद बरदाई ने पृथ्वीराज को कविता के माध्यम से प्रेरित किया-
“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है मत चूकै चौहान.”
ये ही वे काव्य-पंक्तियां हैं, जिनका आधार लेकर चौहान वंश के पृथ्वीराज चौहान ने तीर को के सीने में उतार दिया और वो वहीं तड़प तड़प कर मर गया. चंद बरदाई ने गुरु की तरह दो काव्य-पंक्तियों से ही पृथ्वीराज चौहान को ही नहीं, समाज और देश को भी सुलतान मुहम्मद गौरी के ज़ुल्मों से निजात दिला दी. चौहान का निशाना अचूक था.
हमारे दूसरे चौहान साहब हमारे पड़ोसी हैं. चौहान साहब हमारे पारिवारिक मित्र हैं. एक कार ऐक्सीडैंट में उनकी दाहिनी भुजा कोहनी तक कट गई. अस्पताल तक पहुंचते-पहुंचते वह भुजा निर्जीव हो गई और जुड़ नहीं पाई. जब उन्हें होश आया तो, अपनी दाहिनी भुजा कटी देखकर कुछ क्षणों तक सोच में पड़ गए कि, अब वे कार कैसे ड्राईव करेंगे, बिज़नेस कैसे चलाएंगे? अगले ही पल अपनी पूरी संकल्प शक्ति को जगाते हुए पत्नि से स्लेट और चॉक मंगाने को कहा. अस्पताल में ही लेटे-लेटे उन्होंने अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति से लैफ्ट हैंड से लिखने व अपने हस्ताक्षर करने में महारत हासिल कर ली. अब वे योग अभ्यास व प्राणायाम से लेकर ड्राईविंग व बिज़नेस का काम स्वतंत्रता से कर लेते हैं. महीने में दो बार तो बिज़नेस के काम से बखूबी विदेश यात्रा भी कर आते हैं. उनकी कार ड्राईविंग तो इतनी कमाल की है कि, उनकी गाड़ी से उतरने का मन ही नहीं करता. इन चौहान का निशाना भी अचूक था.
एक सिपाही जिसकी 1971 के भारत पाक युद्ध में एक हाथ कोहनी से कट कर अलग हो गया था, उसने भी हिम्मत नहीं हारी. वह एक जीप चलाता था और टिहरी से प्रतिदिन देहरादून जीप चला कर यात्रियों को लाता ले जाता था और उसकी भी ड्राइविंग कमाल की थी.
तोक्यो ओलिंपिक के हीरो नीरज चोपड़ा भी किसी चौहान से कम नहीं हैं. नीरज चोपड़ा आजकल भारतीय खेलों की सबसे चर्चित शख्सियत हैं. यह मुकाम उन्हें तोक्यो ओलिंपिक में जैवलिन थ्रो का स्वर्ण पदक जीतने से मिला है. इनके अतिरिक्त तोक्यो ओलिंपिक में ढेरों चौहान विजयी हुए, जिनमें अनेक दिव्यांग भी थे.
“न उमर की सीमा हो
न जनम का हो बंधन
जब प्यार करे कोई
तो देखे केवल मन.”
की तरह चौहान बनने के लिए भी न उमर की सीमा हो, न जनम का हो बंधन, बस जीतने की चाहत की आवश्यकता है. अभी हाल ही में 105 साल की दादी-परदादी ने पी.टी.उषा की तरह उड़नपरी बनकर अपना दम दिखा दिया.
दोनों हाथ न होने के बावजूद एक युवक कुशलतापूर्वक पाव-भाजी का स्टॉल लगा रहा है. वह भी किसी चौहान से कम नहीं है.
रोशनी गई, हिम्मत नहीं…’अंधाधुन’ में आयुष्मान खुराना को ट्रेनिंग देने वाले हेमेंद्र की कहानी
उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर के मड़ियाहूं के रहने वाले हेमेंद्र प्रताप सिंह आज न देखते हुए भी लखनऊ में बैंक मैनेजर हैं और साथ ही दृष्टिबाधित लोगों को ट्रेनिंग देते हैं। उन्होंने अंधाधुंन (Andhadhun) फिल्म में ब्लाइंड किरदार के लिए आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) को तीन महीने की ट्रेनिंग की। इसके अलावा वे वेब सीरीज ब्रीद इनटू दि शैडो-सीजन-3 में अभिषेक बच्चन के साथ काम कर रहे हैं.
अंत में हम यही कहना चाहेंगे, कि जीत उसी चौहान की होती है, जो सही समय पर ”मत चूकै चौहान” मंत्र का सही प्रयोग कर सकते हैं. कामेंट करके बताइएगा, कि हमारे आज के ब्लॉग के चौहान आपको कैसे लगे?