द्रौपदी मुर्मू का मयूर गंज से राष्ट्रपति भवन तक का सफर
यशवंत सिन्हा का एक टीवी चैनल पर साक्षात्कार सुना था जिसमें उन्हों ने द्रौपदी मुरमू को एक कठपुतली उम्मीदवार कहने से जरा भी परहेज नहीं था।उन्हे ये बोलते हुए उन्हें ये भी नहीं याद आया कि वे एक महिला के बारे में बोल रहें थे।वे खुद तीन उम्मीदवारों की ठुकराई हुई जगह पर अभियुक्त थे ये शायद भूल गए थे।बहुत बड़ी बड़ी बातें बोलने वाले यशवंत सिन्हा खुद बीजेपी में वित्तमंत्री और विदेश मंत्री भी रह चुके हैं। संभाल चुके हैं उसी पार्टी के बारे में जो बातें हो रही थी जिस के लिए कभी उन्होंने काम किया था।2019 में उन्होंने बीजेपी छोड़ दी और अब टीएमसी में हैं।शरद पवार ने भी हार के डर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी से मना कर दिया।उसके बाद फारुख अब्दुल्ला ,फिर गांधीजी के पोते गोपालकृष्ण गांधी ने उम्मीदवारी से मना कर दिया।इन हालातों में हर ने वाले घोड़े पर कोई दांव नही लगाना चाहता हैं।कोई भी इज्जतदार व्यक्ति इन हालातों ने हार का सेहरा पहनने को तैयार नहीं हैं।यशवंत सिन्हा के लिए जीत से ज्यादा उमेदावारी मिलना ही बहुत हो जायेगा।लगभग 48% मत बीजेपी के पास हैं और 2% कोई सहयोगी दल वाले दे ही देंगे तो इन हालात में बीजेपी का जितना जैसे तय ही हैं।इसी वजह से सभी ने उम्र के अंतिम पड़ाव में हर का सामना करने से कतराते हैं।
इन हालातों में उनका जीत जाना पक्का ही समझो।
एक तो वे शिक्षिका हैं,दूसरे वह महिला हैं और तीसरे एक आदिवासी हैं जिस से बीजेडी का सपोर्ट मिलना तय हैं।
बहुत ही सामान्य परिस्थितियों से उपर उठी हुई द्रौपदी 1979 भुवनेश्वर की रामादेवी कॉलेज से स्नातक की उपाधि ली थी,और उड़ीसा सरकार के सिंचाई विभाग में क्लर्क की नौकरी करली लेकिन बाद में शिक्षिका और फिर असिस्टेंट प्रोफेसर बन बच्चों को पढ़ाने लगी।उसके बाद 1997 में वार्ड पार्षद का चुनाव लड़ी और जीत भी गई।इसके बाद राजनैतिक चुनौतियों को सर करती गई और दो बार उड़ीसा से विधायक बनी और 2004 तक उड़ीसा सरकार में राज्य मंत्री रही फिर 2015 झारखंड की राज्यपाल बनी तब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को मिलने आई द्रौपदी मुरमू ने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन वह खुद राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार होगी।
वह कोमल स्वभाव की होने के साथ साथ एक सिद्धांतों वाली कड़क नेता भी मानी जाती थी।जब जारखंड में बीजेपी की सरकार ने कुछ कानूनों को संसद में पारित भी करवा लिएं लेकिन वे कानून आदिवासी समुदायों से जुड़े हुए थे जिसमे कुछ संशोधन किया गया था लेकिन आदिवासियों के हित में नहीं होने की वजह से दस्तखत नहीं कर वापस भेज दिए थे।ऐसे ही जारखण्ड के एक दूसरे संशोधित कानून पर भी दस्तखत नहीं करके वापस भेज चुकी हैं।
ओडिसा के मयूर भंज जिले में 1958 में 20 जून के दिन हुआ था।मध्यम वर्गीय इलाके में 600 ग़ज के मकान में रहने वाली द्रौपदी मुरमू अगर राष्ट्रपति चुनाव में जीत गई तो वह राष्ट्रपति भवन में रहने लगेगी जो 330 एकर में फैला हुआ हैं जिसमें 340 कमरे हैं और बगीचा 190 एकड़ में फैला हुआ हैं और 700 से ज्यादा कर्मचारी काम कर रहें हैं।अगर उनका चयन हो गया तो वह प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की तरह ही आजाद भारत में जन्मी पहली राष्ट्रपति होगी।अपने राजनैतिक जीवन में सफल होते हुए भी उन्हे पारिवारिक जीवन कष्टमय बन गया था।चार सालों के दरम्यान ही उन्होंने दो बेटे,पति और अपनी मां को को दिया था।इतने हादसों की वजह से मानसिक आघात लगने से डिप्रेशन में चली गई थी लेकिन एक योद्धा की तरह ध्यान और योग की मदद से उन विपदाओं से बाहर आ गई।और हालातों से हरने के बजाय हालातों को हरा दिया था।
वैसे देखें तो ज़िंदगी की चुनौतियों पर बार-बार बिखरी एक नारी जो हर ज़ख़्म के साथ निखरी थी। महिला सशक्तिकरण की एक जिंदा मिसाल कहें तो वह हैं द्रौपदी मुरमू।
जहाँ एक तरफ़ आज भी महिलाओं को कमजोर कहा जाना वाजिब हैं ये भी प्रश्न हैं। आज वैसे ही महिलाएं अपनी बुद्धिमत्ता और आत्मविश्वास के साथ अपना लोहा मनवा रही है। देश के लिए सचमुच गर्व की बात है एक महिला जो पिछड़े समाज का हिस्सा रही वह अपने आत्मविश्वास और अपने दम पर आज खुद को राष्ट्रपति के पद के लिए प्रस्थापित करने जा रही है। अपनी ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव से गुज़री द्रौपदी मुरमू,भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद की हकदार बन चुकी है।झारखंड राज्य की पहली महिला राज्यपाल बनने का सौभाग्य भी उन्ही को मिला हैं। अगर भारतीय जनता पार्टी की तरफ से बनी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार जीत जाती है तो पहली बार ऐसा होगा कि कोई आदिवासी महिला भारत देश की दूसरी राष्ट्रपति बनेगी और भारत की दूसरी महिला राष्ट्रपति द्रोपदी मुरमू बनेंगी।
जैसे संथाल समाज में पढ़ना भी मुश्किल था लेकिन परिवार के लिए रोटी कमाना भी जरूरी थी।
द्रौपदी जी बिना वेतन के शिक्षिका के तौर पर काम कर रही थी, उनको जब ये लगा कि पढ़ने-लिखने के बाद आदिवासी महिलाएं उनसे थोड़ा दूर हो गई हैं तो वो खुद सबके घर जा कर ‘खाने को दे’ कह के बैठने लगीं। जिसने अपने पति और दो बेटों की मौत के दर्द को झेला और बेटे के मौत के बाद तो ऐसे डिप्रेशन में गईं कि लोग कहने लगे कि अब ये नहीं बच पाएंगी पर इन सारी परिस्थितियों से उभरकर वो अब भारत की ‘राष्ट्रपति’ बनने जा रही हैं।
महिलाएं को तो इससे बहुत दूर रहना चाहिए, उसी गाँव की महिला अब भारत की ‘राष्ट्रपति’ पद के लिए चुनी गई है। लड़कियों को पढ़ाई के लिए प्रेरणा देकर उन्हें आगे बढ़ने के समझाया।समाजसेवा भी करती रही हैं वह।औरतों को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रही हैं।जिस मौहौल से वह आती थी वहां राजनीति में जाना ठीक नहीं माना जाता था।आदमियों के साथ मिल कर काम करना सामाजिक तरीकों से स्वीकार्य नहीं था। उनके विद्यार्थियों को इतनी लगन से पढ़ती थी कि सब बिना कोचिंग के बहुत अच्छे परिणाम लाया करते थे।
2009 में चुनाव हारने के बाद अपनी असफलता की जड़ को तलाशने फिर से गाँव में जा कर रहने लगी और जब वापस लौटी तो अपनी आँखों को दान करने की घोषणा की। एक सरल व्यक्तित्व की धनी द्रौपदी मुरमू एक राजनेता होने के बावजूद भी ज्यादा संपत्ति की मालकिन नहीं है। उनके पास मात्र मुश्किल से बुरी परिस्थियों में अपने घर को सँभालने लायक संपत्ति है।
द्रोपदी मुरमू को साल 2007 में नीलकंठ पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ विधायक के रूप में प्राप्त हुआ है, यह पुरस्कार उड़ीसा विधानसभा के द्वारा दिया गया था।
[19/07, 8:04 am] Jashree Birmi: जैसे ही द्रौपदी मुरमू को राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार घोषित होते ही गंदे आक्षेप लगाना शुरू हो गया हैं।वह शुरू यशवंत सिन्हा से हुआ फिर एक के बाद एक नेताओं का कुछ न कुछ अनर्गल बातें बोलना शुरू हो गया हैं।सियासत चमकाने के लिए महिला कहें,एक आदिवासी जाति का भी अपमान करना कहां तक वाजिब हैं?
तेजस्वी यादव ने भी उनको मूर्ति कह दिया,क्या वजह हैं इन शब्दों का? ये जानना जरूरी हो जाता हैं,क्या ये सत्ता नहीं पा सकने की जुंजलाहट हैं या शासित पक्ष के विरोध में कुछ भी बोल कर शांत पानी में कंकर डाल उसे आंदोलित कर के चर्चा के दल दल और आरोप प्रत्यारोप करके कीचड़ उछालने के अलावा राजनीति कुछ भी नहीं रह गई हैं।
8 सांसद कुछ कारणों की वजह से वोट नही दे पायें हैं।16वें राष्ट्रपति चुनाव के लिए सोमवार को मतदान हुआ। इसमें 99 प्रतिशत से अधिक सांसदों और विधायकों ने वोट डाला। चुनाव में भाजपा की अगुआई वाले एनडीए के तरफ से द्रौपदी मुर्मू और विपक्ष की ओर से यशवंत सिन्हा प्रत्याशी हैं।
वोटिंग के बाद अब एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की जीत और अधिक पुख्ता होती नजर आ रही है। मुर्मू के पक्ष में विपक्ष के कई विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की। समाजवादी पार्टी, एनसीपी, कांग्रेस जैसे दलों के विधायकों ने मुर्मू को वोट कर दिया। कई विधायकों ने खुलकर इसे जाहिर भी किया।हर राजकीय दल की सौदेबाजी का रूप जहीर हो गया जब विपक्ष के कई नेताओं ने खुलकर बीजेपी प्रतियोगी को समर्थन दे कर जाहिर कर दिए हैं।ये 24 के चुनावों का आगाज हो समझ लें,विपक्ष में कोई एक दूसरे का साथ नहीं हैं ये साफ दिख रहा हैं।ममता ने तो यशवंत सिन्हा को बंगाल में प्रचार करने आने के लिए मना ही कर दिया था। ममता ने अपने आदिवासी मतों को बचाने के लिए किया था।तभी ही यशवंत सिन्हा को अपना राष्ट्रपति पद के दावे को वापस ले अपनी साख बचा लेनी चाहिए थी तो शायद इतने मतों से पीछे नहीं रह जाते।17 सांसदों का क्रॉस वोटिंग होने से भी यशवंत सिन्हा को नुकसान हुआ हैं।104 विधायकों और 17 सांसदों का समर्थ मिला हैं द्रौपदी मुरमू को ,उनकी वोटिंग वैल्यू 105299 हुई मतलब कि 10 राज्यों में से 809 मत मिले हैं।ये शुरुआती याने की पहले राउंड की गिनती हैं।दूसरे राउंड में 1349 और यशवंत सिन्हा को 537 मत मिले थे। और तीसरे राउंड में जब द्रौपदी मुरमू 5,43,216 मत पा कर वैल्यू मतों से आगे निकल गई तब तो जीत पक्की थी।जाहिर परिणाम मैजिकल मतों से जीती हैं मुरमू को बधाई दे यशवंत सिन्हा ने बधाई भी दी।और द्रौपदी मुरमू राष्ट्रपति चुनाव में विजेता बन ही गई जो एक मत से पूरे देश के राजकीय दलों का अभिप्राय था। विपक्षों ने भी मुरमू की जीत की ही भविष्यवाणी की थी।बहुत बहुत बधाई हो आदिवासी महिला को जिसने देश के सर्वोच्च नागरिक पद पाने के लिए।
सब ही नेताओं ने उन्हें बधाई देने में यशवंत सिन्हा के अलावा,शरद पवार,ममता बैनर्जी ने भी उनके कार्यकाल में सफल प्राप्ति की शुभ कामनाएं दी। बाकि भी कई नेताओं ने शुभ कामनाओं की जड़ी लगा दी थी।
बहुत ही रंगारंग कार्यक्रम से उनकी जीत का जश्न मनाया जा रहा था।कई जगहों पर रोड शो का आयोजन किया जा रहा हैं।
— जयश्री बिरमी