गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बोयेगा तू दर्द ज़माना, आंसू-आंसू रोयेगा।
अब तक जितना पाया था, सब धीरे-धीरे खोयेगा।
भूख मिटाने खातिर बच्चा, कुछ खाकर ही सोयेगा।
हुई सियासत मैली इतनी, कंथा कैसे धोयेगा।
बोझ बढ़ा कंधे पर तो, आखिर कैसे ढोयेगा।
मिला अगर सुख-चैन यहां, सपने स्वयं संजोयेगा।
— वाई. वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

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