सावनी दोहे
सावन मनभावन सखी झूला पड़ गया डार |
झूँक मुरारी दे रहे, बैठी है ब्रज नार ||
मेंहदी चूड़ी झूलना बरखा की बौछार |
तीजे राखी पंचमी सावन के त्यौहार ||
सावन शिव का मास है महिमा अपरमपार |
गौरी मंगला साथ शिव पूजन बारम्बार ||
उमड़ घुमड़ बरसे घटा, छाई नई बहार |
आया सावन झूम के, गाएं मेघ मल्हार |
हरियाली चहुंदिश दिखे कुहूके कोयल डार
दादुर मोर पपीहरा झींगुर करे पुकार ||
मेहंदी रची हथेलियाँ, कर सोलह सिंगार
झूले सखियां झूलना, सावन आया द्वार |
हरी चुनरिया चूड़ियां हरा हरा संसार |
पैरों में पायल बजे मृदुल लगे झनकार |
तिजिया गुड़िया झूलना राखी का त्यौहार |
भाई- बहना के लिए प्याऱ भरा उपहार |
कजरी गायें गोरियाँ सावन बरसे द्वार |
जन जीवन में हो गया नवजीवन संचार |
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’