मुक्तक/दोहा

सावनी दोहे

सावन मनभावन सखी झूला पड़ गया डार |
झूँक मुरारी दे रहे, बैठी है ब्रज नार ||

मेंहदी चूड़ी झूलना बरखा की बौछार |
तीजे राखी पंचमी सावन के त्यौहार ||

सावन शिव का मास है महिमा अपरमपार |
गौरी मंगला साथ शिव पूजन बारम्बार ||

उमड़ घुमड़ बरसे घटा, छाई नई बहार |
आया सावन झूम के, गाएं मेघ मल्हार |

हरियाली चहुंदिश दिखे कुहूके कोयल डार
दादुर मोर पपीहरा झींगुर करे पुकार ||

मेहंदी रची हथेलियाँ, कर सोलह सिंगार
झूले सखियां झूलना, सावन आया द्वार |

हरी चुनरिया चूड़ियां हरा हरा संसार |
पैरों में पायल बजे मृदुल लगे झनकार |

तिजिया गुड़िया झूलना राखी का त्यौहार |
भाई- बहना के लिए प्याऱ भरा उपहार |

कजरी गायें गोरियाँ सावन बरसे द्वार |
जन जीवन में हो गया नवजीवन संचार |

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016