पगडंडी से शिखर तक : द्रौपदी मुर्मू
“दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥”
श्री राम चरित मानस की यह चौपाई आज प्रासंगिक को रही है। रामराज्य’ में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं।
एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार को राष्ट्रपति पद के चुनाव में विपक्षी दलों के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को भारी अंतर से हराकर भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनने की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। द्रौपदी मुर्मू भारत की पंद्रहवी राष्ट्रपति चुनी गई हैं। द्रौपदी मुर्मू भारत की दूसरी महिला राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। झारखंड प्रांत की राज्यपाल रहीं द्रौपदी मुर्मू ने इस चुनाव में पहली वरीयता वाले 2,824 वोट हासिल किए। वहीं, उनके प्रतिद्वंदी यशवंत सिन्हा ने प्रथम वरीयता के 1,877 वोट प्राप्त किया। इस चुनाव में कुल 4,754 वोट पड़े, जिसमें से 4,701 वोट वैध थे, जबकि 53 अमान्य क़रार दिए गए।
द्रौपदी मुर्मू आगामी दिनों राष्ट्रपति के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ लेंगी। द्रौपदी का जन्म ओडिशा के मयूरगंज जिले के बैदपोसी गांव में 20 जून 1958 को हुआ था। द्रौपदी संथाल आदिवासी जातीय समूह से संबंध रखती हैं। उनके पिता का नाम बिरांची नारायण टुडू एक किसान थे। द्रौपदी के दो भाई हैं। भगत टुडू और सरैनी टुडू। द्रौपदी की शादी श्यामाचरण मुर्मू से हुई। उनसे दो बेटे और दो बेटी हुई। साल 1984 में एक बेटी की मौत हो गई। द्रौपदी का बचपन बेहद अभावों और गरीबी में बीता था। लेकिन अपनी स्थिति को उन्होंने अपनी मेहनत के आड़े नहीं आने दिया। उन्होंने भुवनेश्वर के रमादेवी विमेंस कॉलेज से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की। बेटी को पढ़ाने के लिए द्रौपदी मुर्मू शिक्षक बन गईं।
मुर्मू का ये सफर इतना आसान भी नहीं है। यहां तक पहुंचने के लिए मुर्मू ने न जाने कितनी तकलीफें झेलीं हैं। इस सफर में कई अपने भी दूर हो गए। कष्ट इतना मिला कि कोई आम इंसान कब का टूट गया होता। फिर भी मुर्मू ने न केवल संघर्ष जारी रखा बल्कि देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचने में कामयाब हुईं। द्रौपदी मुर्मू देश की अगली राष्ट्रपति होंगी। एक समय था जब आदिवासी परिवार से आने वाली मुर्मू झोपड़ी में रहती थीं। अब उन्होंने 340 कमरों के आलीशान राष्ट्रपति भवन तक का सफर पूरा कर लिया है। आज मुर्मू न केवल भारत, बल्कि दुनियाभर के अरबों लोगों के लिए एक मिसाल बन चुकी हैं।
किसी भी राज्य में खुशहाली तभी आती है जब सभी अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करें। यदि ‘मैं’ अर्थात हर व्यक्ति अपने-अपने निर्धारित कर्तव्यों का पालन करने लगे तो किसी भी समाज में रामराज्य आने में समय नहीं लगेगा। श्रेष्ठ सामाजिकता एवं नैतिकता यही है। रामायण-काल में हमारे देश में व्यक्तियों के कर्तव्य निर्धारित करने के लिये व्यवस्था रही है। हमारे देश की प्राचीन व्यवस्था में भी व्यक्ति के वर्ण और आश्रमिक स्थिति के अनुसार अपने कर्तव्यों के पालन पर बल दिया गया है। इस व्यवस्था की आदर्श स्थिति यह है कि सभी व्यक्ति अपने-अपने वर्णाश्रम धर्म के अनुसार कार्य करें। वाल्मीकि लिखते हैं-ब्राह्मणा: क्षत्रिया: वैश्या: शूद्रा: लोभविवर्जिता:।…अर्थात रामराज्य में चारों वर्ण के लोग लोभरहित होकर अपने-अपने वर्णाश्रमानुसार कर्म करते हुए संतुष्ट रहते थे । आज कुछ वैसा ही वातावरण भारत में देखने को मिल रहा है। आज भारत में अंत्योदय योजना सफल होती दिख रही है। वर्तमान में राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद पर सुदूर वनवासी, आदिवासी क्षेत्र से जीवन यापन करने वाली बहन द्रोपदी मुर्मू इस महान पद को सुशोभित करेंगी। यह भारत के लिए हर्ष, गौरव की बात है। एक सामान्य से भी निम्न जीवन भी सर्वोच्च बन सकता है यह भारत के ही लोकतंत में संभव हैं। आज पुनः भारत में राम राज्य की कल्पना साकार होती दिख रही है। राम राज्य की कल्पना में कहा है की
रुचि, प्रकृति, रहन-सहन, भाषा, परंपराएं भिन्न-भिन्न होती हैं। इस आधार पर बने समूह धीरे-धीरे जातियों का रूप ले लेते हैं। लेकिन इस आधार पर ऊंच-नीच, व्यवहार व भेदभाव ठीक नहीं है। सभी से समानता का व्यवहार ही समरसता के लिए आवश्यक है। त्रेता युग में जब ऐसी परिस्थिति आई तब राम ने राजधानी छोड़ी। निषादराज व केवट को गले लगाया, शबरी के झूठे बेर प्रेम से खाए। 14 वर्ष वन में रहकर समरस संगठित समाज की स्थापना की। समाज ने संगठित होकर राक्षसों का नाश किया। द्वापर में भी ऐसी ही परिस्थिति आई पांडवों के नेतृत्व में भगवान कृष्ण ने धर्म की स्थापना की। इसी प्रकार वर्तमान में यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में यह कार्य सम्पन्न किया जा रहा है। आज सुदूर ग्रामीण इलाकों से भी लोग भारत का नेतृत्व कर रहे हैं। आज भारतीय लोकतंत्र विभिन्नता में एकता के मार्ग को अपनाकर राष्ट्र को उन्नति के शिखर पर पहुंचा रहा है। आज द्रोपदी मुर्मू लाखों लोगों की आदर्श बन चुकी हैं। द्रौपदी मुर्मू की सादगी, परिश्रम, कर्तव्य पालन, धैर्य, साहस, संबल लोक कल्याण की भावना जैसे गुण उन्हे शोभायमान कर रहे हैं। आज भारत भी अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा है। द्रोपदी मुर्मू को ढेर सारी शुभकामनाएं।
— बालभास्कर मिश्र