लघुकथा

भेदभाव

आज सीमा की शादी की सालगिरह है सुबह से ही सभी के बधाई संदेश आ रहे थे, मगर जिसके फोन का उसे इंतजार था अभी तक नहीं आया -! उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था ।वो सोच-सोच के परेशान हो रही थी पिताजी का फोन क्यों नहीं आ रहा ? हर साल सबसे पहले वही बधाई देते थे– न जाने आज क्या हुआ !
इधर कुछ दिनों से उनके बातों में अजब -सा दूराव महसूस हो रहा था — जब भी फोन पर बात होती हमेशा अपने बेटों और पोते की बात किया करते।
हालांकि भैया पिताजी की रत्ती भर भी परवाह नहीं करते । न तो कभी पिताजी को अपने पास बुलाते  ,न ही उनका कोई ख्याल रखते –हां अपनी जरूरते जरुर उनसे पूरी करवा लेते और पिताजी उनकी सारी जरूरतें खुशी -खुशी पूरी करते ।सीमा अगर कोई सहायता मांगती तो उनके पास हजारों बहाने तैयार होते कभी आर्थिक तो कभी शारीरिक।
एक बार सीमा किसी काम से मायके गई थी (वैसे उसका मायका जाना कम ही होता है क्योंकि जब से उसकी मां का निधन हुआ है , उसे उस घर में बहुत बेगानापन महसूस होता है) पिताजी को किसी से कहते सुना
“बेटियों को कुछ भी देने का कोई फायदा नहीं है ,वो तो दूसरे घर की है उनकी शादी कर दी, अपनी जिम्मेदारी खत्म ! बेटे और पोते अपने है खानदान उन्ही से चलना है।
चाहे बेटे कैसे भी हो अपना उत्तराधिकारी वही है। हमें बेटे और बहू के प्रति निष्ठा रखनी चाहिए।”
सीमा उनकी बात सुनकर हैरान रह गई। उसे अपने पिताजी से ऐसे भेदभाव की उम्मीद न थी।
— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P