सावन
पानी की आस लिए लिए
वारिश के इंतजार में
लो आषाढ़ बीत गया
चलो कोई बात नहीं।
सावन आ गया,
गुरु पूर्णिमा भी मनाया हमनें
शिव का दरबार सज गया
शिव मंदिरों में भोलेनाथ को
जल भी खूब चढ़ गया
बम बम भोले, ऊँ नमः शिवाय के जयकारों से
वातावरण शिवमय भी हो गया।
पर इंद्रदेव को पानी के नाम से
जैसे बुखार हो गया,
या उन्हें किसी बात पर क्रोध आ गया,
सावन में भी आखिर उन्हें क्या हो गया?
या उनके जल पाइपों में भी क्लेश मच गया।
हे इंद्रदेव! कुछ तो बोलो, मुंँह तो खोलो
आखिर तुम्हें क्या हो गया
इतना अनर्थ आखिर कैसे कर सकते हो
सावन है, भोले भंडारी का जल अर्पण
पूजन, अनुष्ठान चल रहा है
शिव भक्तों में बड़ा उत्साह है।
पर तुम्हारे मन का न कोई थाह है
किसान हैरान परेशान है
सूखे के डर से हलकान है
अपने खेतों को देख रोता है
रात को भी चिंता में नहीं सोता है।
धान की फसलें ही सूख नहीं रही
धरती भी प्यास से व्याकुल है,
हरियाली भी अब दम तोड़ रही है
हर तरफ आशंकाओं की नींव
मजबूत हो रही है।
मगर हाय रे सावन हम तुझे क्या कहें,
क्या इंद्र से तूने कोई बैर बढ़ाया है,
या इंद्र का कोई कोप तेरी आड़ में आया है,
हे इंद्रदेव! ये तुम्हारी लीला
हमारी समझ से बाहर है,
कहीं सूखा ही सूखा तो कहीं
अतिशय बाढ़ से जान हलक में उतर आया है।
जो भी भूल हुई हमसे, अब क्षमा करो
अपनी अकड़ छोड़ चेहरे पर मुस्कान भरो
जहाँ बाढ़ है वहाँ रहम करो
जहाँ सूखा पड़ता जा रहा है
वहाँ कुछ करम करो,
सावन है तो सावन का आनंद लेने दो
भोले भंडारी की कृपा पाने दो,
हमारी आह लेकर क्या करोगे आखिर?
बस इतनी सी कृपा करो हम पर
वारिश संग हम पर अपनी कृपा कर दो,
सावन में हमें भी अठखेलियाँ कर लेने दो।
सावनी फुहार का मजा लेने दो
सावन है तो सावन को खास बना दो
अब अकड़ छोड़ भी दो
हमें भिगो भिगोकर खुश कर दो
हमारे साथ आप भी आकर
खुशियों का खूबसूरत गुलदस्ता दे दो
और हमारी खुशियों में रंग भर दो।