कहानी

तू खुदा हो गया

 

सुबह से तीसरी बार ऋचा का फोन अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका था। मगर मैं व्यस्तता के कारण उसका फोन उठा नहीं रहा था।
तब उसने मां को फोन किया, मां ने हालचाल पूछा और फोन मुझे पकड़ा दिया।
हाँ! बोल बेटा -त्रिलोक ने कहा
उधर से ऋचा फट पड़ी- मुझे तुमसे बात नहीं करनी है।
फिर फोन क्यों किया? त्रिलोक ने पूछा
तुमसे लड़ने के लिए।उधर से सुनाई पड़ा
तो लड़ो न, तुम्हें रोका किसने? त्रिलोक ने कहा
तुमनें? ऋचा बोली
मैंने कब रोका? त्रिलोक चौंक गया
तो मेरा फोन क्यों नहीं उठाया? ऋचा तैश में आ गई।
कहीं व्यस्त था, वहां बात करना मुनासिब नहीं था बेटा। त्रिलोक ने अपनी लाचारी प्रकट कर दी
मगर क्यों? ऋचा ने पूछा
तू क्या सोचती है मैं झूठ बोल रहा हूँ?त्रिलोक परेशान सा हो गया
हाँ? ऋचा ने साफ कह दिया
ऐसा नहीं है बेटा, मैं अपने दोस्त की माँ के अंतिम संस्कार में था। त्रिलोक ने सच सामने रख दिया
ओह सारी भैया? माफ कर दो।ऋचा को अपनी भूल का अहसास हुआ
चल अब बोल-क्या बात है? त्रिलोक ने ऋचा से कहा
कितने दिन हो गये मुझसे बात किए हुए-ऋचा के स्वर उलाहना था
त्रिलोक भी चुहल के मूड में आ गया- तुझसे ही तो बात कर रहा हूँ।
मजाक में मत टालो। मैं बहुत गुस्से में हूँ।ऋचा झुंझलाई
कितना गुस्से में? त्रिलोक ने चिढ़ाया
इतना कि सामने होते तो तुम्हारा सिर फोड़ देती-हिटलर के अंदाज में था ऋचा का जवाब
अपना सिर भेज दूँ क्या? हंसते हुए त्रिलोक ने पूछा
ये कैसी बात कर रहे हो तुम-ऋचा के स्वर में अपनापन था
तू ही तो कह रही है, तो मैं सोचने लगा शायद इसी लिए फोन किया।त्रिलोक ने जवाब दिया
अब जरा सीरियस हो जाओ भाई! ऋचा के स्वर में गंभीरता आ गई
हो गया- मस्ती के अंदाज में त्रिलोक ने जवाब दिया
क्या? ऋचा ने पूछा
सीरियस! त्रिलोक ने कहा
तुम्हें कुछ पता भी है? मैंने तुम्हें फोन क्यों किया? ऋचा ने अधिकार से कहा
हाँ, लड़ने के लिये।त्रिलोक का जवाब था
हाँ, वो भी शायद आखिरी बार! ऋचा के स्वर में दर्द उभर आया
अरे नहीं। डरो मत ,खूब लड़ो।ये तुम्हारा अधिकार है। त्रिलोक ने हौसला बढ़ाने की गर्ज से कहा
हाँ भैया! इसी अधिकार ने तो विवश किया।ऋचा अब गंभीर थी
ये तू क्या गोल गोल घुमा रही है। साफ साफ बोल न क्या बात है? त्रिलोक ने हल्के फुल्के अंदाज में पूछा
……..उधर से रोने की आवाज सुनाई पड़ी।
अब त्रिलोक को कुछ विशेष समस्या का एहसास होने लगा-ऐ लड़की ,तू रो क्यों रही हैं?
डरती हूँ कि क्या तुम सुन सकोगे? ऋचा के स्वर में संदेह का पुट था
यार! सस्पेंस न पैदा करो, जो भी है, साफ साफ बताओ। त्रिलोक के स्वर में झुंझलाहट थी
कुछ खास नहीं, बस अब तुमसे विदा लेने का समय आ गया है। ऋचा ने सपाट स्वर में जवाब दिया
मतलब? त्रिलोक चौंक पड़ा
मतलब ये कि मैं मौत के दरवाजे पर खड़ी हूँ भैया। ऋचा के स्वर में बेबसी साफ झलक रही थी।
ऐसा भद्दा मजाक अच्छा नहीं लगता बेटा-त्रिलोक ने नाराजगी से कहा
ये मजाक नहीं सच्चाई है मेरे प्यारे भाई।अफसोस है कि अपने वादे के अनुसार तुम्हारी कलाई में राखी भी शायद न बाँध सकूँ।
त्रिलोक ऋचा की बात सुन अंदर तक हिल गया।फिर अपने को संभालते हुए उसे आश्वस्त करने लगा- तू परेशान मत हो। तुझे कुछ नहीं होगा। पूरी बात बता।
ये तुम्हारा प्यार है भाई। मगर मेरी दोनों किडनी फेल हो चुकी है।अब ज्यादा समय भी नहीं है मेरे पास।
बस इतनी सी बात। मेरे पास दो किडनी है, एक तेरी हुई। तू परेशान मत हो, मैं आ रहा हूँ। सब ठीक हो जायेगा। मेरे रहते तुझे कुछ नहीं हो सकता।
मगर तू मुझे किडनी क्यों देगा?
आखिर राखी बंधवानी है तुझसे, तो कुछ तो देना पड़ेगा न। तो अपनी किडनी ही दे रहा हूँ तुझे।
नहीं भैया! तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे।
क्यों, क्या तू मेरी बास है, जो आदेश दे रही है। मैं क्या करुँगा, ये मेरे सोचने का विषय है। इस साल मेरी कलाई सूनी नहीं रहेगी, बस।
ऋचा रो पड़ी
देख बेटा। रोना बंद कर। मैं कल आ रहा हूँ। अब समझ में आया कि तू मेरा फोन क्यों नहीं उठाती थी।
मम्मी पापा भी कुछ नहीं बताते थे। शायद अपने पराये का भेद समझ मे आने लगा।
नहीं भैया, ऐसा न कहो। आपने तो जो अधिकार दे दिया, उसकी कल्पना भी नहीं रही कभी। आपको पाकर भाई न होने का भाव तक मिट गया। मगर हम आपकी जिंदगी दाँव पर नहीं लगा सकते। अपनी जान बचाने के लिए आपकी जान खतरे में नहीं डाल सकते।

बेकार की बातों में उलझने का कोई फायदा नहीं है बेटा। बस अब तू इस बारे चुपचाप रहेगी, तो ही अच्छा है, वरना पिटेगी।
कैसे चुप रहूं भैया? कौन बहन है जो अपने भाई की जिंदगी खतरे में डालना चाहेगी, आखिर मैं भी तो आपकी बहन ही हूँ न।
अब तू बड़ी दादी मत बन।तू क्या सोचती है कि मैं तुझे यूँ ही मौत की ओर बढ़ते देखता रहूंगा। पागल हो तुम।
मैं तो आपसे छोटी ही हूँ, अभी अम्मा नहीं हूँ, तो दादी कैसे बन सकती हूँ। ऋचा फीकी मुस्कान से बोली
हाँ, ये भी ठीक है, अब कुछ भी मत सोच। बिना राखी बँधवाये मैं तुझे मरने भी नहीं दूंगा।
मेरा भाई पागल हो गया है तो मैं क्या कह सकती हूँ, बस ईश्वर से यही प्रार्थना है कि मेरे भाई का आशीर्वाद हर जन्म में मुझे मिलता रहे।
आप आइए। मैं राखी के साथ प्रतीक्षा करुँगी भैय्या। शायद एक बार और आखिरी बार ही सही, अपना वादा पूरा कर सकूँ। ऋचा ने हथियार डालने वाले अंदाज में कहा
जरूर बहन, मगर आखिरी बार नहीं, बार बार तू इस भाई की कलाई पर अपना स्नेह बंधन सजाएगी, चिंता मत कर, मैं तुझे कुछ नहीं होने दूंगा, ये वादा. है तेरे भाई का। खुश रहो बेटा।
हां, मेरे पगले भाई। तू तो खुदा हो गया है। चल जल्दी आना। कहीं देर न हो जाय और मैं तुझसे मिल भी न सकूँ।
त्रिलोक अंदर ही अंदर रो पड़ा, फिर भी उसने ऋचा को आश्वस्त किया और फोन काट दिया।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

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