गीत/नवगीत

ओ मेरे चाँद आ जाओ

(वियोग श्रृंगार )

*ओ मेरे चाँद आ जाओ*

झलक दे दे के तड़पा ना कहाँ हो यूं न तरसाओ.
हृदय अंबर पे छा जाओ ओ मेरे चाँद आ जाओ .

गगन में चांदनी फैली मेरे दिल में अंधेरा है.
न तारे झिलमिलाते हैं उदासी का बसेरा है.
लिए पूनम का उजियारा ओ मेरे चाँद आजाओ.

बहुत मुश्किल हुआ जीना ये दुनियाँ बस रुलाती है.
लगे गुल खार के जैसे नहीं खुशियाँ सुहाती है.
लरज़ सावन की संग लेकर ओ मेरे चांद आजाओ.

गए परदेस जब साजन सपन भी खो गए सारे.
दिखे चहुओर अंधियारा नजारे खो गए सारे .
सुहाने रंग सब ले कर ओ मेरे चाँद आ जाओ.

बरसती बादरी भी अब मेरा तन मन जलाती है.
घटाएं मुंह चिढ़ाती है पवन कांटे चुभाती है.
‘मृदुल ‘शीतल मलय बन कर ओ मेरे चाँद आ जाओ.

झलक दे दे ———————
ह्रदय अंबर पे ——————-
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016