गीत/नवगीत

सावन गीत

सावन गीत

बदरिया छा गई कारी, धरा पर प्याऱ आया है.
बाहरें छा गई न्यारी, गुल ओ गुलनार छाया है.

पड़े बागों में झूले हैं, झरी रिमझिम फुहारों की.
बढ़ाती पैग गा गा कर, सुरीली तान कजरी की.
बिजुरिया जब दमकती है, करें झंकार झींगुर भी.
पपीहा मोर संग दादुर, कुहुकती खूब कोयल भी.
सुहाना सावनी बादल, सुखद सौगात लाया है.
बदरिया छा गई…………….

गरजते में मेघ जब घिरकर, सखी मनवा मचलता है .
पिया का साथ होता जब, हिया चंदन महकता है.
रचा मेहंदी करूं सिंगार पैरों में हरी चूड़ियां.
झूलाएं जब सजन झूला निखर जाए मेरी दुनिया.
बरसते घन महक सावन,सजन का साथ भाया है |
बदरिया छा गई……………
बहारें छा गई……………..
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल ‘
लखनऊ, उत्तरप्रदेश
स्वरचित

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016