आचार विचार
रब ने बनाई कैसी संसार
सिमट गया है आचार विचार
घर में छुपकर रोता संस्कार
सामाजिकता का भूला व्यापार
गाँव जवार की रीत भुलाया
नया जमाना ने सबको समझया
मानव का मानव है दुश्मन
जीवन बन गया भॅवर का उलझन
लुट खसोट की गरम है बाजार
दशों दिशा में मचा है हाहाकार
लालच बन गया धन का पैमाना
अपना भी लगता है अब बेगाना
पीठ बुराई मीत है चपके से करता
जो जैसा है करता वो वैसा ही भरता
आँख दिखलाता बन कर पड़ोसी
झूठ की दर पर सच ही है दोषी
किस किस पर मानव करे विश्वास
जग ने तोड़ा मन की सब आस
उपर से सब कुछ ठीक ठाक है लगता
भीतर भीतर भीतरघात है करता
सुख चैन की सब लुट गई भोर
शराफत का मुखड़ा लगा घूमता चोर
रूठा सावन रूठा है नभ का बादल
इश्क ने बना दिया युवा को पागल
हड़पने की बन गई है जग की रीत
किसी को किसी से ना रहा है प्रीत
सगा भी अब लगता है सब पराया
कलंक का टीका माथे पर है सजाया
फिजां ने कर ली अब विषपान
मानव बन गया जग में शैतान
चोर चोर बना है मौसेरा भाई
चादर में छुपा है गली में कसाई
— उदय किशोर साह