धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर, एडमिंटन, कनेडा

द भारतीय कल्चर्ल सोसायटी ऑफ अल्बर्टा, हिन्दू मन्दिर, एडमिंटन, कनेडा का प्रसिद्ध मन्दिर है। यह स्थान 9507,39ए एविन्यू, एडमिंटन, कनेडा में सुशोभित है। इस पवित्र स्थान का 10 जून 2006 को मंगलाचरण किया गया।
मन्दिर का शाब्दिक अर्थ है, घर, देवालय। मन के भीतर का स्थान। यहां एकाग्रता में भक्ति भाव की समर्पण शीलता का आनंद मिलता है। यहां अतिन्द्रियता की अवस्था पैदा होती है। यहां संस्कृति के शिल्प का निर्माण होता है। मन्दिर एक ऐसा स्थान है यहां आस्था प्रेम संवेदना सद्भाव की भितियांे पर अपने संसार को खड़ा करना है। मस्तिष्क की उथल-पुथल खत्म होती है। यहां अन्तरात्मा की विवेक शक्ति, परिपक्वता, तात्विक गहराई, निष्ठा, दायित्वभावना, पुण्यता, धर्म कृत्दक्षता, संवेदनशीलता, आत्मिक और आध्यात्मक शक्ति, चिरन्तन मानवीय मूल्यों की सुन्दरता, प्रेम भावना, समता, कर्तव्य भावना सदैव उजागर होती है।
मन्दिर ईश्वर की पूजा के लिए बनाए जाते हैं। यहां के मुख्य पुजारी श्री पंकज दीक्षित जी ने बताया कि आस्था में विश्वास मिलता है, शक्ति मिलती है, काम करने की ऊर्जा मिलती है। यहां तनाव मुक्त होता है। दृश्य तथा अदृश्य तनाव खत्म होता है। हमारी भारतीय पद्धति बहुत वैदिक है। हर एक तथ्य के पीछे वैज्ञानिक कारण होता है।
मन्दिर में घंटी लगाने के पीछे बहुत बड़ा वैज्ञानिक कारण है। बहुत से लोगों को इस का ज्ञान नहीं कि पूरी दुनियां को पता है कि भारत में ब्राहमंड का विज्ञान कूट-कूट के भरा हुआ है। उन्हीं ब्रहमांडीय वैज्ञानिक में से किसी वक्त बड़े शोधकर्ता ने यह सिद्ध कर दिया कि मन्दिर की घंटी बजाने से उसकी टन-टन की आवाज़ से आस-पास के बैक्टीरिया मर जाते हैं तो जितने भी श्रदालु मन्दिर में घंटी बजाते हैं असल में वह बैक्टीरिया का बध कर रहे होते हैं।
घंटियों की आवाज़ मन्दिर की दिव्य पहचान है और पुराने समय से ही मन्दिरों में घंटियां लगाने की परम्परा चली आ रही है। मन्दिर में घंटी लगाने और बजाने के पीछे धार्मिकता के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी है।
घंटी आवाज़ के बिना पूर्ण नहीं होती आरती। देवी-देवताओं की आरती घंटी के नाद के बिना पूर्ण नहीं हो सकती। भगवान की आरती में कई प्रकार के वाद्य यंत्र बाजाए जाते हैं, इसमें घंटी का स्थान महत्वपूर्ण है। घंटी की ध्वनि मन-मस्तिष्क और शरीर का साकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है तो घण्टी की आवाज़ से लोगों के मन में शक्ति, भक्ति, एकाग्रता भाव, जागृत होते हैं। वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाता है। आवाज़ बहुत चमत्कारी होती है। मन्दिरों में लगातार एक लय में घंटियां बनजे से जो ध्वनि निकलती है वह हानिकारक सूक्ष्म कीटाणुओं को नष्ट कर देती है। साकारात्मक वातावरण निर्मित होता है।
मन्दिरों में घंटियां चार प्रकार की होती हैं – गरूड़ घंटी, द्वार घंटी, हाथ घंटी तथा घंटा; घंटी की मनमोहक एंव कर्ण प्रिय ध्वनि मन-मस्तिष्क को अध्यातम भाव की ओर ले जाने में सामर्थ्य रखती है।
मन्दिरों में विचार-चिंतन और भावनाओं की एक विलक्षण संगति देखने को मिलती है। सहानुभूति, आध्यात्मिकता और सौंदर्यात्मक सृजन प्रक्रिया मिलती है। निराशा और कुंठा खत्म होती है।
पण्डित राजेश मोहन तथा जन्मान्शी लक्ष्मण जी ने यहां बताया कि मन्दिर में पूजा का बहुत महत्व होता है। यहां पांच देवताओं का पूजन (पूजन) (पंचोपचार) तथा षोडशोपचार का पूजन एकाग्रचित से होता है। जो वातावरण तथा मानव दृश्य को शुद्ध तथा दृश्य तथा अदृश्य तनाव से मुक्त करता है।
पूजाः यथेश्ट आदर सत्कार, आव भगत, प्रार्थना, दिव्य स्थान, आध्यात्मिकता, दिव्य अनुष्ठान, आर्शीवाद, शुभवचन असीस को कहते हैं। एकाग्रता में केवल अंतमुर्खता, आत्मानुभूति, गहराई में डुबकियां लेना होता है।
जिन लोगों ने एकाग्रता साधी है, निर्विकल्पता और समता साधी है वे मन्दिर के र्प्याय ही हैं। मन्दिर में स्कन्द पुराण की कथा भी चल रही थी। स्कन्द पुराण मुख्य रूप् में हिन्दू भगवान शिव और देवी पार्वती के आस-पास केन्द्रित है।
यहां आचार्य पण्डित श्री पंकज दीक्षित, श्री जन्मान्शी लक्ष्मण तथा श्री राजेश मोहन झा जी ने बताया कि यह मन्दिर लगभग दो एकड़ में शोभनीय है। कार पारकिंग की भव्य सुविधा है।
एडमिंटन, (कनेडा) में यह सबसे बड़ा मन्दिर है। मन्दिर में प्रवेश करते ही फूलों की क्यारियां अभिवादन करती प्रतीत होती हैं। इनके बाद कुछ सीढ़ियां चढ़कर मन्दिर में प्रवेश किया जाता है। बाई ओर जूता घर है, इस के साथ ही जल प्रबंधन तथा छोटा सा चर्तुभुज आंगन यहां भगवान गणेश जी की बड़ी प्रतिभा दीवार पर सुशोभित है जो प्रत्येक आगंतुक को शुभकामना, आर्शीवाद देती प्रतीत होती है। फिर मन्दिर का बड़ा दरवाजा खुलते ही सामने खूबसूरत झिलमिलाता आध्यात्मिकता में ओत-प्रोत बड़ा हाल है। जो स्वच्छता और पवित्रता में ऊँ, ओ३म (ओम) का उच्चारण करने को लालायत करता है। एक मुकम्मल शांति, सुकून तथा संयमितता का आनंद मिलता है।
मन्दिर हाल में प्रवेश करते ही द्वार पाल की वाई ओर काले श्याम रंग में भव्य वस्त्र गृहन किए हुए गरूड़ जी की प्रतिभा शोभनीय है। बिल्कुल सामने आध्यात्मिक रौशनियां में भगवान प्रतिमाएं-भगवान श्री गणेश, दुर्गा, गायत्री, राधा कृष्ण, शिव परिवार, पंचमुखी हनूमान, वेक्टेश्वर स्वामी, राम लक्ष्मण दरवार आदि भगवान की प्रतिमाएं आध्यात्मिक भव्य वस्त्रों में शोभनीय हैं। जिनके दर्शन से चित्त, दृश्य, आत्मा, आनंद की संसिक्तता में प्रवेश करती है। अन्तरात्मा के निभृत एकामत के सत्य के साथ अंतरंग और नितांत वैयतिक साहचर्य का सम्मूर्तन होता है। भगवान के यथार्थ सौंदर्य के दर्शन नयी जीवन दृष्टि भर देता है। इन प्रतिमाओं के दरवार के साथ दाईं-वांई ओर भगवान मूर्तियां और भी सुशोभित है।
मन्दिर में माथा टेकने के पश्चात सभी भक्तों को अंजलि में अमृत प्रसाद दिया जाता है तथा मौजूद अन्य प्रसाद दिए जाते हैं। मन्दिर हाल में दीवारों के साथ-साथ कुर्सियां रखी हुई हैं यहां वृद्ध लोग बैठ सकते हैं।
भीतरी छत का डिजाईन शीशे नुमां है जिस रौशन भीतर प्रवेश करती है। छत के ऊपर गुवंद सुशोभित है। यहां हिन्दू धर्म सभी व्रत-त्यौहार मनाए जाते हैं विशेष तौर पर महा शिवरात्रि, नवरात्रे, होली, जन्माष्टमी, गणेष चतुर्थी, करवा चौथ, दीवाली तथा वर्ष में एक बार जागरण किया जाता है। जिस में भारत के प्रसिद्ध जागरण गायक बुलाए जाते हैं। यहां अनुराधा पौंढवाल, जसपिन्दर नरूला तथा स्वः नरेन्दर चंचल आदि आ चुके हैं। विशेष तौर पर राम लीला तथा दशहरा धूम धाम एंव श्रद्धा भाव से मनाया जाता है।
डब्ल स्टोरी मन्दिर में सात सौ से एक एक संगत के लिए लंगर हाल हैं। किचन, डायनिंग हाल लगभग चार सुविधाजनक कमरे हैं। वैदिक परम्परा की मर्यादा के सभी कार्य किए जाते हैं।
विशेष तौर पर गोरखपुर से प्रकाशित होता कल्याण मैगजीन (कल्याण पत्रिका) के सभी अंक मौजूद हैं, जिनसे प्रवचन, कथाएं, व्याध्यान, सुक्तियों का प्रयोग किया जाता है।
रविवार को लगभग एक हजार श्रद्धालुओं के लिए भोजन की अवस्था होती है। रविवार को ग्यारह से बारह बजे (सुबह) धार्मिक प्रवचन-भजन होते हैं। आरती सुबह आठ बजे और शाम को सात बजे।
मन्दिर खुलने का समय सोमवार से शुक्रवार सुबह सात से एक बजे और चार से आठ बजे तक। शरिवार सात से दो बजे तथा चार से 8 बजे। रविवार को सुबह सात से शाम सात बजे।
इस मन्दिर की सोसायटी के अध्यक्ष सर्व श्री अरविंद ऐरी, सचिव राम ऐरी, धर्मेन्दर शर्मा, चन्द्र मिततल तथा राजेन्दर चंदन आदि हैं।
आखिर में श्री पंकज दीक्षित जी से संदेश में कहा कि मातृ भूमि से दूर रह कर भी अपनी संस्कृति, संस्कृति की मर्यादा से जुड़े रहें। विदेशों में रह कर भी जिजीविषा (जिजीविषा) के साथ-साथ अपनी धर्म संस्कृति से जुड़ना ही देश भक्ति है।
— बलविन्दर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409