कविता

तोल मोल कर बोल

ये ठीक है कि आपको बोलने की
अजीबोगरीब बीमारी है
मगर यह ठीक तो नहीं है
बोलने से पहले कुछ विचार कीजिए,
बोलना है तो कुछ भी मत बोलिए
बोलने से पहले एक बार तौलिए।
यह भी विचार कीजिए
कि आप सिर्फ बोलने जा रहे हैं
या प्रहार करने जा रहे हैं,
किसी के मन में ठेस लगाने
या किसी को मायूसी देने जा रहे है।
जो भी बोलना है,
उस पर विचार कीजिए
सामने वाले का भी ख्याल कीजिए
समय, परिस्थिति, माहौल भी देखिये।
अच्छा बोलिए, सुसंगत बोलिए
किसी का दिल न टूटे
किसी को ठेस न पहुंचे
अपनी ही बोली से लज्जित न होइए,
अपनी प्यारी बोली को
बेइज्जत न कराइये।
अपनी बोली को अपने सम्मान का
सतत आधार बनाइये,
मान ,सम्मान की बात न भी सोचिये
तो भी बोली को ही पहचान का
अपना विशिष्ट आधार बनाइए।
बोलना ही है तो सोचिये विचारिए
फिर संतुलित, संयमित बोली बोलिए
कुछ भी बोलकर बेइज्जत न होइए,
अच्छा है, बोलिए जरूर
मगर तोल मोल कर ही बोलिए।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921