कविता

गुरु पूर्णिमा विशेष

गुरुओ के गुरू है शिवशंकर
बिन गुरु ज्ञान न टूटे बंधन
जो शिव को अपना गुरू बनावे
सारे बंधन से मुक्त /हो जावे
प्रथम गुरू मेरे माता पिता है
जिसने मुझे चलना सिखाया दूसरा गुरू पाठशाला गुरु है
जिसके आशीष सर पे धरा है
तृतीय गुरु मेरे है शिवशंकर
जिसकी कृपा से टूटे भव बंधन
बिन गुरु गयान न होत उजाला
बिन सत्संग न होत प्रकाशा
बहुत उपकार हुआ गुरुवर का
ज्ञान की ज्योत जला गुरुवर का
ऐसी आशीष दीजों मेरे गुरूवर
तेरी कृपा से छू लू अंबर।
बिजना लक्षमी

बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी (स्नातकोत्तर छात्रा) पता -चेनारी रोहतास सासाराम बिहार।