ग़ज़ल – मत पूछो
हमने कैसे माल बनाया, मत पूछो
अरबों खरबों कहाँ कमाया, मत पूछो
कहाँ कहाँ से हमने माल बटोरा है
क्या-क्या पीया क्या-क्या खाया, मत पूछो
कैसी तिकड़म हमने रोज़ भिड़ायी थी
काला-पीला कौन कराया, मत पूछो
कुल कितना है माल हमें भी पता नहीं
कहाँ रखा है कहाँ छुपाया, मत पूछो
बूढ़ों को तो गुनाह करने का हक़ है
मेरा घोर बुढ़ापा आया, मत पूछो
बहुत सवाल तुमने हमसे पूछ लिये
हमें छोड़ दो अब तो भाया, मत पूछो
दुनिया में उड़ रही हमारी खिल्ली है
‘अंजान’ ने भी मज़ाक़ उड़ाया, मत पूछो
— डॉ. विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’