शायर हूं ना
उसकी मासूमियत के किस्से आओ मैं सुनाता हूं
जिसे अपने ख्वाबों में रोज़ मैं सजा पाता हूं।।
उसकी कज़्जरारी वो आंखें कातिल सी
कज़्जरारी आंखों का काजल मैं चुराता हूं।।
उसके सुर्ख गुलाबी लबों कि लाली की छटा
अपने लबों से छुकर उस लाली को मैं पाता हूं।।
उफ्फ उसकी घनी गेसूओं से लटकती जुल्फ़ै
उन घनी जुल्फों कि उलझन में मैं उलझ जाता हूं।।
उसकी चूंड़ी की खनक दिल की धड़कन बढ़ाती
अपनी ही दिल की धड़कनों को मैं समझाता हूं।।
चलती जब वो बज उठती उसकी पायल की खनक
उसकी पायल की खनक को भी मैं सजाता हूं।।
नशीला सा उसका बरखा में भीगा वो बदन
उसके बदन से लिपट कर मैं सिमट जाता हूं।।
शायर हूं ख्वाबों में डूब मोती भरे शब्द लाकर
ख्वाब अपना सजा शब्दों में मैं सुनाता हूं।।
— वीना आडवाणी तन्वी