नजरिया
शहर में पली बढ़ी दीपिका जब गाँव में दुल्हन बनकर आई थी तो बिल्कुल अलग से माहौल में ढलना उसके लिए थोड़ा कठिन तो था ही लेकिन वह सोची चलो कुछ दिनों की तो बात है जैसे अबतक स्कूल काॅलेज में मंच पर नाटक करके या फिर फैंसी ड्रेस कम्पिटीशन में जीत हासिल कर प्राइज़ जीतती आयी हूँ तो क्यों न इस ससुराल के मंच पर भी उत्कृष्ट अभिनय करके पुरस्कार हासिल कर ही लूँ इसलिए वह गाँव के रंग में अपने आपको धीरे-धीरे ढालने लगी और कब कैसे उसपर ससुराल का रंग चढ़ने लगा उसे खुद भी नहीं पता चला!
लेकिन दीपिका का रंग उसकी हमउम्र या एक दो वर्ष इधर-उधर की ननदों पर कुछ ज्यादा ही चढ़ने लगा! हँसी ठिठोली करते हुए समय किस तरह गुजर जाता था पता ही नहीं चलता था!
और सभी चचेरे आदि देवर तो हमेशा ही यह गाना गाते रहते थे…
सांचि कहे तोहरे आवन से हमारी …. अँगना में आइल बहार भौजी..!
हाँ सच में बहार तो आ ही गयी थी जिस आँगन में घर की औरतों को खुलकर हँसने का अधिकार न था वहाँ दीपिका के नेतृत्व में जमकर ठहाके लगने लगे थे! कई बार तो बाहर से हवलदार की तरह डंडा लेकर कोई मर्द आते लेकिन दीपिका को देखकर वापिस चले जाते थे!
कुछ महीने इसी तरह से आँगन चहकता रहा फिर समय आ गया दीपिका को अपने पति के साथ शहर जाने की फिर तो परिवार के सभी सदस्यों के साथ-साथ आँगन भी उदास हो गया! उनकी उदासियों को देखकर दीपिका अपने साथ सभी को चलने का आग्रह करने लगी तो सभी के खुशी का ठिकाना न रहा बल्कि वे तो उसी घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे और दीपिका के साथ उसकी सास राधावती, ननद पिंकी और प्रिया भी शहर आ गईं!
दीपिका को तो ननद के रूप में बहन और सास के रूप में माँ मिल गई थी ! जब उसके पति आॅफिस चले जाते थे तो उनका दिन हँसते – खेलते कैसे कट जाता था पता ही नहीं चलता था! जब कभी कोई पड़ोसी या रिश्तेदार आते थे तो सास – बहू और ननद भौजाई का यह प्रेम देख कर आश्चर्य चकित हुए बिना नहीं रहते थे और दीपिका की प्रशंसा करते नहीं थकते थे और दीपिका प्रशंसा से खुश होकर और भी अच्छे से व्यवहार करने लगती थी बल्कि उसकी तो आदत बन गई थी सास ननदें!
हाँ कभी-कभी दीपिका का मन होता था कि कभी सिर्फ अपने पति के साथ सिनेमा या कहीं और जाती लेकिन ऐसा सम्भव नहीं हो पाता था तभी उसे अपनी माँ की दी हुई नसीहत याद आ जाती थी कि खुशियाँ बाँटने से दुगनी वापस आती हैं और थोड़ा सा त्याग कर देने से बहुओं का पूरे घर पर राज हो जाता है तो सच में दीपिका घर के सभी सदस्यों के दिलों पर राज करने लगी थी बस छोटी-छोटी चीजों का त्याग करके!
जैसे कभी दीपिका की कोई ड्रेस उसकी ननद पिंकी को पसंद आ गई और वो पहनने की इच्छा जाहिर करती उसके पहले ही वो उसे देकर कहती पिंकी जी ये ड्रेस आपपर ज्यादा जच रही है इसे आप ही पहनो और ड्रेस लेते हुए पिंकी के चेहरे पर जो खुशियाँ खिल जाती थीं उसे देखकर पिंकी को काफी सुकून मिलता था! फिर सास को भी अपनी माँ की दी हुई मन पसंद साड़ी पहना कर साथ में ही घूमने ले जाती थी, फिर कभी उनके लिए अच्छे से स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर पूछती थी कैसा बना है , तो फिर कभी सास को साथ लेकर सुबह – सुबह मंदिर चली जाया करती थी आदि – आदि, तरह – तरह के क्रियाकलापों से सास के भी दिल पर राज करने लगी थी तभी तो सास राधावती उसे आशिर्वाद देते नहीं थकती थी! कभी-कभी तो उसका पति अम्बर अपनी माँ को चिढ़ाते हुए कहता भी था कि माँ ये दीपिका जादूगरनी है तुमपर जादू कर दी है इसके चक्कर में मत पड़ना और दीपिका छुपकर अम्बर को मुंह चिढ़ा दिया करती थी ताकि उसकी इस हरकत को सास ननदें न देख सकें और अम्बर भी उसे जीभ चिढ़ा दिया करता था लेकिन कभी कभी उनकी इन हरकतों पर राधिका तथा पिंकी की नज़र पड़ ही जाया करती थी और वे भी हँसे बिना नहीं रहतीं थीं ! इस तरह समय खुशी – खुशी चलता रहा!
समय बीतता गया और काफी खोजबीन करने के पश्चात पिंकी की भी शादी संभ्रांत परिवार में अच्छे पद पर प्रस्थापित अधिकारी से तय हो गई ! पिंकी की शादी में दीपिका शादी की खरीदारी से लेकर गीत संगीत आदि की सारी जिम्मेदारी खुद पर लेकर बहुत अच्छी तरह से भूमिका निभाई ,यहाँ तक कि अपने मायके से मिला हुआ सबसे पसंदीदा जड़ाऊ सेट जो उसकी माँ ने दिया था वह भी खुशी – खुशी दे दी क्योंकि वह सेट पिंकी को बहुत ही पसंद था! सभी रिश्तेदार तो बस यही कहते थे कि ईश्वर सभी को दीपिका जैसी ही बहू दें!
राधिका ने भी दीपिका को अपने गले से लगाते हुए कहा कि बेटी शायद मैंने पूर्व जन्म में कुछ अच्छे कर्म किये होंगे जो तुम जैसी बहु मुझे मिली, ईश्वर सबको ऐसी बहू दे! इतना बोल देने मात्र से दीपिका को अपना किया गया हर कार्य के बदले में लगता था कि पूरा साम्राज्य मिल गया है और फिर वह राधिका का पैर छूकर कह दी कि और माँ आपके जैसी सास भी हर बहू को मिले! दीपिका तो यही सोचती थी कि आखिर मायके वाले अपनी बेटियों को ससुराल का इतना भय क्यों दिखाया करते थे!
पिंकी के बिदाई के समय दीपिका बहुत रोई और जाते समय यही आशिर्वाद दी कि ईश्वर करे पिंकी कि तुम्हे भी मेरी जैसी ही सास मिलें!
पिंकी के विवाह के बाद दीपिका का मन नहीं लगता था इसलिये वह दिन में कई बार पिंकी से बातें करके कुशल छेम पूछ लिया करती थी! शुरु – शुरू में तो पिंकी सबकी तारीफ़ ही करती थी लेकिन धीरे-धीरे पिंकी अपने ससुराल के सदस्यों की बुराई भी करने लगी जिसपर दीपिका उसे अपनी माँ की कही बात समझा दिया करती थी कि खुशियों बाँटने से दुगनी वापस आती हैं और थोड़ा सा त्याग कर देने से बहुओं का पूरे घर पर राज हो जाता है फिर पिंकी कहती भाभी सभी आपके जैसा नहीं हो सकते न और न ही आपके जैसी सबकी किस्मत हो सकती है आप किस्मत वाली हैं कि आपको ऐसी सास ननदें मिली हैं, तब दीपिका पिंकी के हाँ में हाँ मिलाकर कह देती थी कि हाँ वो तो है ही लेकिन पिंकी जी आप अपनी सोच सकारात्मक रखिये क्योंकि सभी मनुष्य में कुछ अच्छाई और कुछ बुराई होती है कुशलता इसमे है कि हम अच्छे पहलुओं को याद रखें और बुरे पहलुओं को भूलने की कोशिश करें तथा अपनों की अच्छाई और बुराई दोनों को ही सहर्ष स्वीकार करें तभी रिश्ते निभेंगे और पिंकी अपनी भाभी की हाँ में हाँ मिला दिया करती थी!
एक दिन दीपिका अपनी सास राधिका के कमरे में चाय लेकर जा रही थी तो कुछ बातें सुनकर उसे न जाने क्यों और सुनने की इच्छा होने लगी और वह दरवाजे के ओट में ही खड़ी होकर सुनने लगी शायद राधिका की पिंकी से बात हो रही थी… राधिका बोल रही थी कि तुम अपनी सास को अपने साथ मत ले जाना अभी तुम और जमाई बाबू एक साथ रह कर अकेले एक दूसरे को समझो ये तुम्हारी भाभी तो बहुत सीधी है उसके जैसा मत बनना और दीपिका हाथ में चाय की ट्रे लिये खड़ी सोच रही थी कि मेरी सास मुझे सीधी कह रहीं हैं या बेवकूफ़ या फिर बेटी और बहू में सभी का नजरिया भिन्न हो जाता हैं!