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वीरबहूटी कहलाती हूँ। छूते ही शरमा जाती हूँ।। लाल रंग मखमल-सी काया। जिसने देखा रूप सुहाया।। रेंग – रेंग कर मैं जाती हूँ। वीरबहूटी कहलाती हूँ।। जब अषाढ़ में बादल घिरते। धरती पर जल वर्षा करते।। भूतल के ऊपर आती हूँ। वीरबहूटी कहलाती हूँ।। बच्चे मुझे प्यार करते हैं। छू -छू कर मुझसे डरते हैं।। […]
बालकविता – इंद्रधनुष 🌈
सात रंग की पाँती सोहे। वक्र,गगन में दृग मन मोहे।। यह शुचि इंद्रधनुष कहलाता। हम सबका वह मन बहलाता। सुबह पश्चिमी नभ में होता। संध्या वेला पूर्व उदोता।। पहला रँग है जैसे बैंगन। कहें बैंगनी घर के सब जन।। फ़िर नीले की आती बारी। ज्योंअलसी की पुष्पित क्यारी आसमान का रँग अब आता। नयनों को […]
बाल कविता
गोलू भोलू है दो भाई घर आंगन की ये किलकारी दादाजी को खूब मन भाते दादी के ये आंख के तारे साथ साथ स्कूल जाते आपस में ये कभी न झगड़े लूका छिपी का करते खेल फूट बाल है इनके प्रिय खेल प्यारे प्यारे बच्चे आते मिलकर खूब खेल जमाते खेलकुदकर जब थक जाते दादाजी […]
4 thoughts on “कृष्ण-कन्हैया”
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सही कहा आपने।
कान्हा की मुरली के हम दीवाने हैं।
कितनी सुंदर मुरली तेरी,
मोरपंख मनभाया हैं।
जी, बहुत-बहुत शुक्रिया.
सही कहा आपने।
की मुरली के हम दीवाने हैं।
कितनी सुंदर मुरली तेरी,
मोरपंख मनभाया हैं।
जी, बहुत-बहुत शुक्रिया.