लघुकथा

फिजूलखर्ची

कुछ दिन के लिये पिताजी गांव से भाई के पास शहर में रहने आये| पिता ने सुबह उठते ही न्यूज पेपर्स के बीच कुछ ढ़ूंढ़ते हुए पुत्र से पूछा–“तुम कोई हिन्दी का समाचार पत्र क्यों नहीं लेते ?’
“अरे पापा हिन्दी से कब किसका भला होंने वाला है ? जिन्दगी में कुछ बनने के लिये इंगलिश जरूरी है। फिर घर में दो इंगलिश के पेपर आते ही हैं, साथ में एक हिन्दी पेपर भी लेना क्या फिजूलखर्ची नहीं होगा ?’
“बेटा कैरियर के हिसाब से तुम्हारी बात सही हो सकती है किन्तु हिन्दी पढ़ना या जानना कैरियर में बाधक तो नहीं हैं ।यदि हम हिन्दी भाषी हिन्दोस्तानी ही अपनी भाषा की इस तरह उपेक्षा करेंगे तो हमारे बच्चे अपनी भाषा पढ़ना ही नहीं बोलना व समझना भी भूल जायेगे| फिजूलखर्ची देखो तो बेटा एक – दो पीजा की कीमत में एक महीने का समाचार पत्र तो आ ही जाता है।’यह सुनते भाई उमेश सोच में खो गया |

— रेखा मोहन

*रेखा मोहन

रेखा मोहन एक सर्वगुण सम्पन्न लेखिका हैं | रेखा मोहन का जन्म तारीख ७ अक्टूबर को पिता श्री सोम प्रकाश और माता श्रीमती कृष्णा चोपड़ा के घर हुआ| रेखा मोहन की शैक्षिक योग्यताओं में एम.ऐ. हिन्दी, एम.ऐ. पंजाबी, इंग्लिश इलीकटीव, बी.एड., डिप्लोमा उर्दू और ओप्शन संस्कृत सम्मिलित हैं| उनके पति श्री योगीन्द्र मोहन लेखन–कला में पूर्ण सहयोग देते हैं| उनको पटियाला गौरव, बेस्ट टीचर, सामाजिक क्षेत्र में बेस्ट सर्विस अवार्ड से सम्मानित किया जा चूका है| रेखा मोहन की लिखी रचनाएँ बहुत से समाचार-पत्रों और मैगज़ीनों में प्रकाशित होती रहती हैं| Address: E-201, Type III Behind Harpal Tiwana Auditorium Model Town, PATIALA ईमेल [email protected]