फिजूलखर्ची
कुछ दिन के लिये पिताजी गांव से भाई के पास शहर में रहने आये| पिता ने सुबह उठते ही न्यूज पेपर्स के बीच कुछ ढ़ूंढ़ते हुए पुत्र से पूछा–“तुम कोई हिन्दी का समाचार पत्र क्यों नहीं लेते ?’
“अरे पापा हिन्दी से कब किसका भला होंने वाला है ? जिन्दगी में कुछ बनने के लिये इंगलिश जरूरी है। फिर घर में दो इंगलिश के पेपर आते ही हैं, साथ में एक हिन्दी पेपर भी लेना क्या फिजूलखर्ची नहीं होगा ?’
“बेटा कैरियर के हिसाब से तुम्हारी बात सही हो सकती है किन्तु हिन्दी पढ़ना या जानना कैरियर में बाधक तो नहीं हैं ।यदि हम हिन्दी भाषी हिन्दोस्तानी ही अपनी भाषा की इस तरह उपेक्षा करेंगे तो हमारे बच्चे अपनी भाषा पढ़ना ही नहीं बोलना व समझना भी भूल जायेगे| फिजूलखर्ची देखो तो बेटा एक – दो पीजा की कीमत में एक महीने का समाचार पत्र तो आ ही जाता है।’यह सुनते भाई उमेश सोच में खो गया |
— रेखा मोहन