ग़ज़ल
आज फिर शाम ने तन्हाई को बुलाया है ।
यादों के बारात ने शहनाई को बुलाया है ।।
दर्द की एहसास है….दिल की एक होने में,
इक आह निकली तो खुदाई को बुलाया है ।
जिन्हें चाहकर भी हम कभी चाह नहीं पाए,
दूर होकर उसी ने यूं बेवफाई को बुलाया है ।
तेरे हुस्न की जिक्र तेरे ही यार के जुबां पर है,
क्या अदाएं तेरी क्यो अंगड़ाई को बुलाया है ।
दिल की अरमां….मेरे दिल ही में मर गया,
कह न सके कुछ क्यों जुदाई को बुलाया है ।
मुकद्दर ने चाहा तो..फ़ैसला होगा तेरा मेरा,
एक वक्त आएगा जो खुदाई को बुलाया है ।
— मनोज शाह ‘मानस’