घर वापसी
आज रघु का शामू घर वापस आ गया था. उसे सहलाते हुए रघु और झुमरी की आंखों में खुशी के आंसू थे.
आंखों के इस नीर में अतीत की स्मृतियां भी तैर रही थीं.
“अनूप को कहीं देखा है?” झुमरी सबसे पूछ रही थी.
“हमने तुम्हारे बेटे को कई दिनों से नहीं देखा.” सब कहते.
“कैसे देख पाते! वह तो दस दिन से गुम हो गया है.” झुमरी की उदासी का कोई जवाब नहीं! राह तकते-तकते उसकी आंखें भी पथरा गई थीं
“तनिक अच्छी-सी धोती निकाल दे,” तभी रघु ने बाहर से आते हुए कहा था. “अनूप का कुछ पता-ठिकाना मिल गया है. आज परली कॉलोनी वाले दीनू काका मिल गए थे. उन्होंने किसी के साथ उसको वल्लभगढ़ की बस में चढ़ते हुए देखा था. थाने वाले मेरे साथ वल्लभगढ़ चल रहे हैं.”
वल्लभगढ़ के थाने वालों की मदद से अनूप मिल गया था. तब भी उसे सहलाते हुए रघु और झुमरी की आंखों में खुशी के आंसू थे.
“लगता है तुम्हारा शामू मिल गया है!” पड़ोसिन ने रघु और झुमरी के साथ रामू-शामू को भी खुश होते देखकर कहा.
रघु और झुमरी की तंद्रा टूट गई थी.
“हां चाची, शामू वापिस आ गया है. देखो कोई इसे खोलकर ले गया था, यह खूंटा ही उखाड़कर दौड़ता हुआ वापस आ गया है.” रघु ने कहा.
“चलो अच्छा हुआ शामू की घर वापसी हो गई, वरना एक बैल से भला कैसे खेत जोतते और कैसे गाड़ी से अनाज मंडी जाकर अनाज बेचते?” चाची भी खुश थी.
“सो तो है चाची! देखो तो वह भी कितना खुश हो रहा है!” रघु भी बहुत खुश था.
“वो तो होगा ही, जनावर को भी अपना घर प्यारा लगता है!”
“बैठो चाची, मुंह मीठा करती जाओ.” झुमरी ने पीढ़ा आगे करते हुए कहा.
“जरूर खाऊंगी. घर वापसी की मिठाई तो बनती है! पर अभी शामू को खिलाओ-पिलाओ, लाड़ लड़ाओ, मैं शाम को आती हूं आपके हाथ का हलवा खाने.” चलते हुए चाची ने कहा.
“चाचा जी को भी साथ लइयो.” कमरे से निकलते अनूप ने चाची जी के चरण स्पर्श करते हुए कहा.
घर वापसी पर 70 साल पहले सीखा हुआ बाल गीत, जो बाद अपने बच्चों और छात्र-छात्राओं को भी सिखाया गया-
“एक चिड़िया के बच्चे चार,
घर से निकले पंख पसार,
पूरब से पश्चिम को आए,
उत्तर से दक्षिण को धाए,
घूम-घामकर घर को आए,
माता को यूं वचन सुनाए,
देख लिया है जग सारा,
अपना घर है सबसे प्यारा.”
व्हीलचेयर पर बैठे दिव्यांग मालिक को कुत्ते ने पार करवाई सड़क, वीडियो दिन बना देगा
एक शख्स अपनी व्हीलचेयर पर बैठा हुआ है, उसका डॉग उसे पीछे से धक्का देते हुए सड़क पार करवा रहा है। वो सड़क के किनारे लाकर उन्हें रोक देता है। और फिर जैसे ही कारें रुकती हैं, फिर उन्हें वैसे ही पीछे से धक्का देते हुए सड़क पार करवा देता है। आसपास के लोग भी देखते रह जाते हैं।
घर के ढोर-ढंगर हों या पालतू पशु-पक्षी, घर के सदस्यों के समान प्यारे होते हैं. वे प्यार करते भी हैं और प्यार पाते भी हैं. वे इतने संवेदनशील होते हैं, कि अगर मालिक उनको खुद से अलग करना चाहे, तो उनको अपने आप पता चल जाता है. प्यार दोनों तरफ से होता है. ढोर-ढंगर हों या पालतू पशु-पक्षी, वो भी घर को अपना घर समझकर शामू की तरह वहीं वापस आना चाहते हैं.