राज की राजनीति, बहुत गहरा राज है।
डर के मारे मुख, कोई न खोले आज है।
झूठ सत्य का नकाब,ओढ़े फिरता यहाँ।
सच का मोल राजनीति में, है रहा कहाँ।
अपना राज बना रहे झूठ का ही जोर है।
संसद के अंदर बाहर भी शोर ही शोर है।
मर्यादा सीखाने वाले, हैं मर्यादा खो रहे।
कुर्सी की कीमत के यहाँ सब धंधे हो रहे।
नई नई तरकीब लगा के देश को खा रहा।
कोई करिश्मा ही देश की लाज बचा रहा।
कौन गरीब को पूछता अमीरी की दौड़ में।
नेता लोग लगे हैं वोटर लुभाने की होड़ में।
राजनीति बन गई अब दुश्मनी का मोल है।
रहा नहीं है ज़बाँ पर,नैतिकता का बोल है।
अपना स्वार्थ सिद्ध हो,बस यही विचार है।
झूठे वायदे कर रहे होता झूठ का प्रचार है।
— शिव सन्याल