कविता

क्यों रोता है दिल

जब कोई बिन खाएं ही सो जाता है
तब दिल ज़ार ज़ार रोता है
पढ़ा लिखा जवान पैसे नहीं दे नौकरी नहीं पाता है
तब दिल ज़ार ज़ार रोता है
गरीब की गुड़िया झोपड़ी के आंगन में
बिना चड्डी के खेलती है
तब दिल ज़ार ज़ार रोता है
गरीब की जवान बेटी मजदूरी पाने के लिए ठेकेदार की बुरी नजर में आती है
तब दिल ज़ार ज़ार रोता है
कोई विधवा अपने गुजारे के लिए किसी सेठ से कर्ज लेते समय की छुअन देख
तब दिल ज़ार ज़ार रोता है
दुखी मां जिसने पाला पोसा सो दुःख उठाए
वह जब भूखी सोती है
तब दिल ज़ार ज़ार रोता है
कब होगा ये जार जार रोना बंद
ये सोच कर भी
दिल ज़ार  ज़ार रोता है
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।