लघुकथा

ओढ़ी हुई मुस्कान!

रक्षाबंधन का दिन था और चार दिन बाद आजादी का अमृतोत्सव मनाया जाने वाला था. चारों तरफ खुशियों का माहौल था. मिठाइयां खरीदी, खाई और बांटी जा रही थीं, पर रोहित के लिए इन खुशियों के कोई मायने नहीं थे.
“जब मन में हो मायूसियों का मंज़र,
तो खुशी के पर्व भी सूने-सूने लगते हैं!” रक्षाबंधन के पावन पर्व पर रोहित के मन में उदासियों अंधड़ उठ रहे थे.
“भले ही मायूसियों के उस मंज़र को गुजरे 75 साल का लंबा अरसा हो गया है, पर उदासियों के उस मंज़र को भुलाना क्या आसान होगा!” रोहित के मानस पटल पर दरिंदगी के वे पल आज भी डेरा जमाए हुए हैं.
“मैं बचाओ-बचाओ की पुकार करता ही रह गया और वे मेरी नन्ही-सी कोमल-सी बहिन को घसीटते हुए ले गए, मैं रोता-चिल्लाता ही रह गया. सुनता भी कौन? वहां सब कातिल ही जो थे!” रोहित का मन अब भी बिसूर रहा था.
“उसका तो क्या पता लगना था, मुझे तो खुद का ही पता नहीं था! जब मैं होश में आया तो पता लगा कि देश ही विभाजित हो गया है. किन्हीं अंजान मेहरबानों की मेहरबानी से मैं हिंदुस्तान कहलाने वाले हिस्से में पहुंच गया था. उन्होंने ही मुझे पाल-पोसकर बड़ा किया. पर मेरी बहिन…!
“कॉल बेल की “राधे-राधे” मुझे हर पल तेरी याद दिलाती रहती हैं मेरी प्यारी राधिके!”
“आज भी तेरी बाट अगोरते ये नैन हुए चकोर-से मेरी प्यारी बहिनिया…!”
“मुंहबोली बहिन आई होगी!” कॉल बेल की “राधे-राधे” सुनकर उसने झट से आंसू पोंछे और उदासियों के अंधड़ को झिंझोड़ते हुए मुस्कान से राखी बांधने को आई बहिन का स्वागत किया.
भैय्या की मुस्कान ओढ़ी हुई है बहिन ने जान लिया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “ओढ़ी हुई मुस्कान!

  • *लीला तिवानी

    देश के इतिहास में 14 अगस्त की तारीख आंसुओं से लिखी गई है। यही वह दिन था जब देश का विभाजन हुआ और 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान और 15 अगस्त, 1947 को भारत को एक पृथक राष्ट्र घोषित कर दिया गया। इस विभाजन में न केवल भारतीय उप-महाद्वीप के दो टुकड़े किये गये बल्कि बंगाल का भी विभाजन किया गया और बंगाल के पूर्वी हिस्से को भारत से अलग कर पूर्वी पाकिस्तान बना दिया गया, जो 1971 के युद्ध के बाद बांग्लादेश बना। कहने को तो यह एक देश का बंटवारा था, लेकिन दरअसल यह दिलों का, परिवारों का, रिश्तों का और भावनाओं का बंटवारा था। भारत मां के सीने पर बंटवारे का यह जख्म सदियों तक रिसता रहेगा और आने वाली नस्लें तारीख के इस सबसे दर्दनाक और रक्तरंजित दिन की टीस महसूस करती रहेंगी।

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