ग़ज़ल
लहू के दरिया बहाए थे आजादी के लिए ।
लाल मांओं ने लुटाए थे आजादी के लिए ।।
यूं नहीं खैरात में हमको आजादी है मिली ।
सीस फंदों पर झुलाए थे आजादी के लिए।।
वीर कितने ही यहां बांधकर सिर पे कफन ।
फिरंगियों से जा टकराए थे आजादी के लिए ।।
जामे शहादत पी गए थे कितने ही यहां सूरमे।
और मुड़ कर घर न आए थे आजादी के लिए ।।
थीं लिखीं लहू से अपने आजादी की इबारतें।
दीप क्रांति के जलाए थे आजादी के लिए ।।
भगत सिंह सुखदेव राजगुरु और बापू की तरह
कई देवता धरती पे आए थे आजादी के लिए।।
सदियों तक परतंत्रता की तोड़ने को बेड़ियां
कुर्बानियों के गीत गाए थे आजादी के लिए ।।
वतन वालो आओ प्रण लें आज उन पे चलने का
पदचिन्ह उन्होंने जो बनाए थे आजादी के लिए।।
उनके सपनों को बचाए रखना हमारा फ़र्ज़ है।
जो सपने शहीदों ने सजाए थे आजादी के लिए ।।
भूल मत जाना वतन इनकी शहादत को कभी।
राष्ट्र ने कई सूरमे गंवाए थे आजादी के लिए।।
— अशोक दर्द