कविता

देशधर्म

बीमार हो गई ये दुनियाँ
कौन करे इसका उपचार
हर जन है कुर्सी के चककर में
किसको है इस देश से  प्यार?

देश की जनता रो रही है
नेता अपनै में है गुलजार
कौन सुनेगा जन जन की दर्द
राजकर्म बन गया है व्यापार

राजधर्म भूला नित्य नये झमेला
एक दुजै पे होता व्यक्तिगत वार
लुट खसोट की हो रही राजनीति
वोट से हाे गई है सबको  प्यार

क्यां हो रहा है आजाद वतन में
रामराज्य की परिकल्पना बेकार
फाँसी पे झुले थे देश भक्त
छोड़ कर माँ की ममता घर बार

उन आत्मा की आँसू को देखो
जो देख रहे हैं गगन से मेरे यार
मादरे वतन की खातिर दी थी
शहादत मेरे वतन के कर्णधार

क्या भूल गये हम उनकी कुर्वानी
जिन्होंने आहुति दी अपनी जवानी
सीने में गोली खा   खा  कर
भूला दी थी जीवन की  कहानी

माँ की गोद सूनी वो करके
माँ भारती की कर्ज चुकाया
ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफत
फाँसी की फँदे को गले लगाया

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088