कविता

पूंछ जरा तू माटी से, सिकंदर की पहचान तू कर

अब सांसे केवल चलती हैं, अब नाम कहाँ ये लेती हैं
जो जीत गया वो बीत गया, जो था ही नही वो मीत गया

जो क़ायल थे वो घायल हैं, जो चल न सके बेहोश हुए
मैं पहले ही बंजारा था, हम फिर से खानाबदोश हुए

हर दयार में बयार बहे, क्यों उडूँ किसी के झोकों से
हर शज़र मुझे पहचान रही,पूंछो कांटों की नोकों से

जिनपे ऋतुयें आतीं हैं, उनसे है व्यवहार नहीं
जो खिलते हैं मुर्झाते हैं, बस कांटे सदाबहार यहीं

ये दुनियां सारी मेरी है, हर दर मेरा ठिकाना है
इस ‘राज’ में केवल लू चलती, ये तो तेरा बहाना है

आज कमां को पाने से, इतना तू गुमान न कर
पूंछ जरा तू माटी से, सिकंदर की पहचान तू कर

राज कुमार तिवारी “राज”
बाराबंकी

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782