कविता

तब तुम्हे न रही अब हमें न रही

जो पिया जा न सका वो पीना पड़ा मुझको
एक एक घूंट उतार कर जीना पड़ा मुझको
अब तुम्हे देख कर बड़ा आसान लग रहा
फटी हुई थी जिंदगी सीना पड़ा मुझको

न इश्क़ काम आया न मुश्क काम आया
जो साथ दे रहे थे वो अश्क़ काम आया
इस दौर दयार में जरा सी हंसी मिल गयी
उस दौर की, बेबसी में जीना पड़ा मुझको

फुर्सत भी क्या चीज है एक साथ न रही
तब तुम्हे न रही अब हमें न रही
साहिल पे बैठ कर ढूंढते मोती तुम रहे
मंझधार का पानी पीना पड़ा मुझको

त्रास में भी आस लेकर हम बह गए
नामी से तुम भी रुख़सत हो गए
“राज” कोई सागर के यहाँ समझ न का
विपरीत सू पे होंठ सीना पड़ा मुझको

राजकुमार तिवारी ”राज”

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782