लघुकथा

पेज नं. 18

2 मई, 1994 का वह दिन उमा कैसे भूल सकती है! सुबह तैयार होकर वह स्कूल गई थी और उसके पति और बच्चे ऑफिस. ताले ठीक तरह से बंद कर गए थे.
ताले तब भी बंद थे, जब छुट्टी के बाद उमा घर वापिस लौटी. ताला खोलते ही जो मंजर उसके समक्ष था, वह दिल हिलाने को काफी था.
अंदर के दरवाजे खुले या टूटे हुए, अल्मारियां खुली हुई, सारा सामान बिखरा हुआ.
बदहवास-सी वह सामने वाले घर में गई और बेल बजाई. दरवाजा उसकी सहेली सीमा ने खोला- “क्या हुआ! चेहरे पर हवाइयां क्यों उड़ रही हैं?” सीमा ने पूछा.
“एक बार मेरे साथ आओ तो!” वह इतना ही बोल पाई.
सीमा भी देखकर दंग रह गई. “हमेशा की तरह आज भी मैंने दो-तीन बार झांका, ताले ठीक देखकर मैं मस्त रही, पर ताले चोरों के लिए थोड़े ही होते हैं!”
मोबाइल तो तब कम ही होते थे, सीमा ने ही लैंडलाइन से 100 नंबर पर फोन किया. पड़ोसी कैमरा लेकर आए और सारे फोटोज़ लिए. समाचार पाकर उसके पति और बच्चे भी थोड़ी देर में ऑफिस से आ गए. थाने से पुलिस वाले भी आकर सब देखकर पूछताछ कर गए थे.
सबने मिलकर घर को चलने-फिरने लायक बनाया. कई दिन तक टूट-फूट ठीक होती रही.
उसके बाद थाने और कोर्ट के चक्कर तो लगने ही थे. बीमा पॉलिसी ली हुई थी, सो उन्होंने भी अपनी कार्रवाई शुरु कर दी थी. सोना भी गया था, सो बात उस दिन के सोने के भाव पर आकर अटक गई. उसके लिए उस दिन का अखबार चाहिए था, वह भी पेज नं. 18.
उमा ने कुछ दिन पहले ही अखबार बेचे थे, शायद उसमें उस दिन का अखबार भी चला गया हो! अल्मारियों में बिछे अखबार के कागजों की तारीखें भी टटोली गईं. सबने अपने-अपने ऑफिस की लाइब्रेरियां भी खंगाल ली थीं. आसपास के कबाड़ियों से भी पूछ लिया गया था, पर उस दिन के अखबार का वह पेज नं. 18 नहीं मिला. हारकर सब भगवान भरोसे ही बैठ गए.
भले ही सब भगवान भरोसे बैठ गए, पर दिमाग तो चल ही रहा था. तभी नजर पड़ी गणेश जी की उस तस्वीर पर, जो बिटिया द्वारा बड़ी मेहनत से कढ़ाई करके गिफ्ट के लिए बनाई गई थी. उस तस्वीर को अखबार से लपेटकर हिफाजत से रखा गया था. जैसे ही पैकिंग खोलकर अखबार को देखा, वह उस दिन का पेज नं. 18 ही था. वह भगवान पर भरोसा भी था, पेज नं. 18 भी और चमत्कार भी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “पेज नं. 18

  • *लीला तिवानी

    वाह, क्या बात है! गणेश जी महाराज ने पेज नं. 18 संभाल कर रखा था! त्रिकालदर्शी गणेश जी महाराज को बहुत पहले से ही पता था, कि 2 मई 1994 का पेज नं. 18 बहुत काम आने वाला है. आज 28 साल बाद भी गणेश जी महाराज की वह तस्वीर उनके घर उसी जगह विराजमान है, जहां 28 साल पहले उनको बिटिया द्वारा बड़ी मेहनत से कढ़ाई करके उनको गिफ्ट के लिए बनाई गई तस्वीर उन्होंने लगाई थी. उस तस्वीर को देखकर 2 मई और का याद आना स्वाभाविक है.

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