कविता

प्रेमधार

कल तक
मेरे घर में
खुशियों की झनकार थी
फूलों की बहार थी
रंगीन बल्बों की लड़ियां थीं
कहकहों की झड़ियां थीं
आशा की मुस्कुराहट थी
सपनों की जगमगाहट थी
रंगों की खिलखिलाहट थी
धड़कते दिलों में
पवित्र प्रेम की आहट थी.
आज
उसमें हैं
टूटे दरवाजे
पिचकी अलमारियां
आभूषणों के खाली डिब्बे
रुपयों से रहित रीते-खुले पर्स
बिखरे कपड़े
निराशा से चटखे दिलों में
दहशत का दारुण दंश.

सावधान!
स्वतंत्रता की वर्षगांठ पर
अनाप-शनाप खर्च करके
कृत्रिम प्रसन्नता की सजावट से
निश्चिंत न हो जाना
अपने देश की
सुरक्षा में
स्वार्थ की सेंध
लगाने वालों से सतर्क रहना..

कहीं
देशद्रोह का दहकता दावांल
देश की खुशियों को
राख न कर दे
हमारे सपनों को
खाक न कर दे
मोतियों के बदले
दामन में आंसू न भर दे
खुशियों के चमन को
दुःखों का घर न कर दे.

आइए
हम सब मिलकर
स्वार्थ की दीवार ढहा दें
सुरक्षा का घेरा बढ़ा दें
दिलों में देशप्रेम की
धधकती ज्वाला जगा दें
घबराए-सताए लोगों को
तूफानों से बचाने हेतु
पावन जल की
स्नेहिल-शीतल
प्रेमधार बहा दें
देश के सुखद भविष्य की
आस को
टूटने से बचा लें

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244