मुक्तक/दोहा

लाल नीति संग्रह – भाग -2

शुभ काम 

मर्यादित रखो भाषा,घर  में  हो  शुभ  काम।

आचरण रखो संयमित, खर्चो कुछ भी दाम।।1।।

सुख-शांति 

जिस  घर   गुस्सा  वासना,मन  में  लालच होय।

उस घर नहि हो सुख शांति,यह जानत सब कोय।।2।।

सशस्त्र सेना झंडा दिवस (7 दिसंबर )

दल सशस्त्र झंडा दिवस, खुलकर दीजै दान।

शहीद अपंग परिवार, होय महा कल्यान।।3।।

विश्व मानवाधिकार दिवस (10 दिसंबर )

अनेकता  में  एकता, राष्ट्र की  यह पुकार।

अर्थ होये या समाज, हो उन्नति अधिकार।।4।।

विजय दिवस (16 दिसंबर )

विजय दिवस के पर्व पर,हर्षित सारा देश।

भारत अपनी शक्ति का,दे दुश्मन सन्देश।।5।।

अल्पसंख्यक अधिकार दिवस (18 दिसंबर )

आज अल्पसंख्यकों में, दिखता हर्ष अपार।

भाषा जाति संस्कृति का,है विशेष अधिकार।।6।।

समर्थ 

समर्थ सदा उसे कहें,घमण्ड पास न कोय।

महिला वृद्ध बच्चों की,सुरक्षा करता होय।।7।।

करक चतुर्थी 

नारी व्रतों  में  उत्तम,करक चतुर्थी जान।

चिर सुहागिन संदेशा, इसकी मंशा मान।।8।।

यूक्रेन रूस युद्ध में तिरंगा 

यूक्रेन  रूस  युद्ध   में,तिरंगा बना ढाल।

हर कोई चिल्ला रहा,झंडा  रोके  काल।।9।।

पाक   छात्र   यूक्रेन   में,तिरंगा  लिए साथ।

आज ढाल हर किसी का,झंडा जिसके हाथ।।10।।

बेटी 

बेटा से अधिक करिये,बेटी पर विश्वास।

ख्याल रखती है बेटी,दूर होय या पास।।11।।

होली 

होली पर्व रंगों का,मन का मिटै मलाल।

कोई रंग बरसाये, कोई   मले   गुलाल।।12।।

भेद 

नेता पुलिस  रिपोरटर,या अधिवक्ता होय।

इनसे  सदा  सावधान,भेद   रखिये    गोय।।13।।

जनतंत्र 

मुफ्त योजनायें फलित,कर्ज हो रहे माफ़।

प्रभावित होये विकास,सत्ता मारग साफ।।14।।

राजनीति व्यापार जनु, जो निज हित में मान।

विरला  ही  कोई  दिखे,ता  जनहित   में  जान।।15।।

दर्शन जनप्रतिनिधि नाहि,होते   सालों     साल।

अब   धन्यवाद    भी   बंद,जनता लिए मशाल।।16।।

पवन 

शीतल मंद पवन सदा, सब को अधिक सुहाय।

वही पवन अति वेग से,नहि  काहू  मन   भाय।।17।।

भाषा 

गरम बात से खिन्न मन ,गरम वात से गात।

दोनों  से  तन  मन   दुखी,दिन होये  या रात।।18।।

अपनों के मध्य 

पशु पक्षी भी खुश होयें ,पाकर अपना झुंड।

जो खुश होता नहि दिखे , वह हैं शिला खंड।।19।।

ओमीक्रोन वायरस 

कोरोना      ओमीक्रोन ,सदा  ही  सावधान।

मॉस्क अरु दूरी रखना ,केवल एक निदान।।20।।

फास्ट फूड 

नीरोगी काया बने, फास्ट फूड का त्याग।

शरीर में  फुर्ती रहे, आलस   जाये   भाग।।21।।

फास्ट फ़ूड से हो रही, युवा शक्ति कमजोर।

सेना पुलिस  भर्ती में,खोजें   रिश्वत   खोर।।22।।

रिश्ते 

गरीबी में अपने भी, रिश्ते जाते टूट।

अमीरी देख ढूंढ़ कर ,रिश्ते बनते अटूट।।23।।

त्याग 

चरित्रहीन व्यक्ति पालन,मूर्ख शिष्य को ज्ञान।

इनको   सदैव   त्यागिये ,यदि  चाहो   उत्थान।।24।।

धनवान 

सद्विद्या  हो  पास  में,धनी  उसे ही  जान।

अपयश का जीवन सदा,मानो मृत्यु समान।।25।।

(अशर्फी लाल मिश्र)

दुर्जन 

होय तक्षक विष दंत में,वृश्चिक पूँछहि संग।

मधुमक्खी सिर जानिये, दुर्जन सारे अंग।।26।।

दुर्जन  को  शिक्षा दीये ,कबहुँ न सज्जन कोय।

जिमि जड़ सींचे दूध से,नीम   न   मीठी  होय।।27।।

अनर्थ 

यौवन धन संपत्ति हो,प्रभुता अरु अविवेक।

चारो  होंय  एक साथ,अनर्थ    होंय   अनेक।।28।।

प्रकृति 

हो  धीरज  वाणी उचित, या   उदारता   ज्ञान।

इनको मानो सहज गुण, नहि उपदेशन भान।।29।।

शिष्टाचार 

लघुता में गुरुता छिपी ,गुरुता को लघु मान।

पहले    बोले    भेंट   में,  उसमे गुरुता मान।।30।।

पाप 

हिय में जिसके पाप हो, तीरथ गये न शुद्ध।

मदिरा  घट  तपाये  से,फिर भी रहे अशुद्ध।।31।।

मान 

वृक्ष एक के पुष्पों से,विपिन सुवासित जान।

वैसे हि सु संतान से , कुल का जग में मान।।32।।

सफलता का मन्त्र 

चुप से मिटे कलह सदा , दरिद्रता उद्योग।

जाग्रत का ही भय मिटे,यह जानत सब कोय।।33।।

निःस्पृह 

अधिकार पाकर कोई,निःस्पृह कैसे होय।

जिमि श्रृंगार प्रेमी नर, अकाम नाही होय।।34।।

द्वेष  

मूर्ख  द्वेष सदा बुध सो ,रंक   धनी  से  मान।

परांगना   कुलीना    सो ,विधवा सधवा जान।।35।।

(अशर्फी लाल मिश्र )

रक्षण 

धन से  रक्षित  धर्म होय, योग से रक्षित ज्ञान।

भली नारि से घर रक्षित, मृदता   से    श्रीमान।।36।।

अंधा 

कुछ हों  गरज  पर अंधे,कुछ  होते कामांध।

कुछ मद में अंधे  दिखेँ ,कुछ होते जन्मांध।।37।।

शत्रु 

वैरी  सदा  ऋणी   जनक, मूरख  पुत्र  को  जान।

व्यभिचारिणी हो जु मातु, सुन्दर तिय अनुमान।।38।।

धन 

समाज में जीवित वही,हो धन जिसके पास।

मीत बन्धु हों पास में, दिखे गुणो का  वास।।39।।

दुख 

घरनि  मरे  बुढ़ापे में,धन हो भ्राता हाथ।

भोजन होय पराधीन,दुखड़ा केवल साथ।।40।।

स्वास्थ्य 

झाग  हटा  हल्दी   डाल ,तब ही दाल उबाल।

गठिया पथरी होय कम ,दुपहर  खाये  दाल।।41

आभूषण 

गुण आभूषण रूप का,कुल का मानो शील।

विद्या भूषण सिद्धि का, धन होय क्रियाशील।।42।।

कुल 

ऊँचा कुल किस काम का, जिसके विद्या नाहि।

विद्या जिसके पास हो, कुल मत पूँछो ताहि।।43।।

सुख 

मोहि सरिस कोइ शत्रु नहि,काम सरिस नहि रोग।

क्रोध  सरिस  पावक  नहीं,ज्ञान सरिस सुख भोग।।44

यथार्थ 

रूप   यौवन  सम्पन्ना, होय जु विद्या हीन।

बिना गंध किंशुक यथा,दिखे   रंग    रंगीन।।45।।

निंदा 

गुणी की निंदा तब तक, जब तक नहि गुण भान।

भीलनि रुची  गुंजा फल, नहि गज मुक्ता ज्ञान।।46।।

विश्वास 

मीत कुमीत दोऊ का ,मत कीजे विश्वास।

मीत कबहूँ कुपित भयो,करे भेद परकास।।47।।

बन्धु 

बन्धु   दिखें   गाढ़े    काम,या जो करता नेह।

जिमि बरगद की वायु जड़,पोषण करती देह।।48।।

लोकतंत्र 

भ्रष्टाचार   दिन   दूना,मानवता का ह्रास।

समाज सेवा पास नहि, लोकतंत्र परिहास।।49।।

व्यर्थ 

वर्षा     वृथा   समुद्र   में,धनकहि   देना   दान।

दिन में दीपक वृथा जनु, तृप्तहि भोजन मान।।50।।

सामर्थ्य 

नेता क्या नहि कर सके,कवि को क्या न लखाय।

क्या न शराबी बक सके,कागा  क्या  नहि  खाय।।51

.–लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर। ©

अशर्फी लाल मिश्र

शिक्षाविद,कवि ,लेखक एवं ब्लॉगर

2 thoughts on “लाल नीति संग्रह – भाग -2

  • अशर्फी लाल मिश्र

    ज्ञान वर्धक सामग्री।

  • अशर्फी लाल मिश्र

    विविध विषयों पर आधारित मुक्तक काव्य संग्रह।

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