यमराज काँप उठा
कल रात मेरे पास यमराज पधारे
मैंने आने का कारण पूछा
तो अपनी बड़ी शान बघारे।
कहा! श्रीमान आपको मेरे साथ चलना है
आपका समय पूरा हो गया है।
यह सुनकर मैं उठ बैठा
और तनकर पूछ बैठा
सिर्फ मैं या मेरी धर्म पत्नी भी
मेरे साथ साथ चलेगी।
मेरी बात सुनकर यमराज भड़क गया
ये कैसा बेतुका सवाल है?
मेरे पास सिर्फ आपका वारंट है
सिर्फ आपको ही चलना है।
यह सुन मुझे गुस्सा आ गया
कुछ शर्म लिहाज है या बेशर्म हो
सात फेरे लिए हैं उसके साथ
साथ मरने जीने की कसमें
अग्नि के सामने खाई है हमनें
अरे! इतना तो समझ तुम्हें भी होनी चाहिए ।
वैसे भी अब इस बुढ़ापे में
उसे बेसहारा कैसे छोड़ दूँ?
यह गुनाह मैं कर सकता नहीं,
फटाफट उल्टे पाँव वापस चले जाओ
उसका भी वारंट हाथों हाथ लेकर आओ
तब तक हम दोनों तैयारी करते हैं
बी.पी., शुगर की दवाई सहेजते हैं।
यमराज मेरी बात सुनकर
अपना सिर खुजाने लगा,
बड़े असमंजस में घिर गया
जैसे बड़े उलझन में फँस गया।
तब तक बीबी जाग गई
मुझ पर एकदम से भड़क गई
नासपीटे सोते में क्या बक रहा था
मेरे मरने की बात किससे कर रहा था,
मरना है तो जा तू मर न
मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है?
जो इतना मेरे पीछे पड़ा है
मेरे मरने का षड्यंत्र रच रहा है।
इतना सुन यमराज कांप उठा
सिर पर पांव रख भाग खड़ा हुआ,
मैं आवाज देता रह गया।
तभी श्रीमती जी ने मुझे झिंझोड़ा
उठ भी अब जाओ श्रीमान
याद है कि भूल गए
फिर से बताना पड़ेगा
तुम्हें ससुराल और मुझे मायके जाना है।