हास्य व्यंग्य

श्रद्धांजलि

मेरा एक मित्र बड़ा प्यारा
मगर बड़ा खुराफाती है,
उसके दिमाग के कंप्यूटर में
सिर्फ खुराफात अपडेट होता रहता है।
उसे श्रद्धांजलि का आनंद लेने का
भूत सवार हो गया,
उसने मुझे अपने घर में कैद कर
मेरे मरने की अफवाह फैला दिया,
अगले दिन अखबारों, चैनलों पर
प्रमुखता से आ गया,
मेरे घर में कोहराम मच गया
ये भी मेरे घर संवेदना व्यक्त करने पहुंच गया।
मां बाप का बुरा हाल था
बीबी का बी. पी. आउट आफ कंट्रोल था,
उसका शरीर निढाल पड़ा था।
जगह जगह श्रद्धांजलियों का
इंतजाम होने लगा था,
मुझे भी सब पता था,
पर मेरा संपर्क तो बाहर से कटा था।
टी. वी. अखबार का ही सहारा था
ऐसा लगता था जैसे मैं ही
सबसे बड़ा बेचारा था।
अब तो हद हो गई यार
जब वह मेरी ही श्रद्धांजलि सभा में
मुझे ले जाने के लिए अड़ा था।
मजबूर होकर मुझे तैयार होना पड़ा
अच्छे से टिपटॉप बनना पड़ा
तभी फोन की घंटी घनघनाई
मैंने फोन उठाया तो आवाज आई
मंत्री की मौत की कोटिशः बधाई।
मैं झल्लाया कौन है तू
पहले ये बता मरा तो मैं हूँ
फिर भी तू मुझे जिंदा और मंत्री को
मरा मान रहा है।
चल कोई बात नहीं मजे ले ले
पर बच्चू तू भी याद रख
मेरी श्रद्धांजलि सभा में मेरे साथ चल।
वह सकपकाया
ये क्या कह रहे हो भाया,
मैं हत्थे से उखड़ गया
खरी खोटी सुना दिया।
तब तक मेरा दोस्त मेरे घर आ गया
श्रीमती पूजा में बैठी थीं
तो वो मेरे बिस्तर तक आ गया,
मुझे हिलाते हुए बोला
तू अभी तक सो रहा है
मैं पचास किमी. दूर से
तेरे सिर पर आ गया।
अब उठ ,जल्दी से तैयार हो जा
तू शायद भूल रहा है
हमें सौ किमी. दूर मंत्री जी की
श्रद्धांजलि सभा में चलना है।
मैंने झल्लाते हुए आंखें खोला
तमककर बोला
तू मेरा दोस्त है या दुश्मन
मैं अपनी श्रद्धांजलि सभा में आने के लिए
तुझे फोन करने ही वाला था
पर तूनें बेशर्मों की तरह हर बार की तरह
इस बार भी मेरा सपना तोड़ दिया
मेरी श्रद्धांजलि सभा का सत्यानाश कर दिया।
मैं मर गया तुझे पता नहीं
शायद इसलिए तूने मेरे सपनों में
रंग घोल दिया,
मैं अब तक जिंदा हूँ तूने बता दिया,
मेरा दिल तोड़कर रख दिया
तू मेरा दोस्त नहीं दुश्मन है
साफ साफ बता दिया।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921