अब वक्त ही नहीं मिलता
अब वक्त ही नहीं मिलता
कभी वक्त ही वक्त होता था
तब दिल तंहाई में रोता था
दर्द ही इतना था जिंदगी में
दर्द लिख ही दिल सोता था।।
अब वक्त ही नहीं मिलता
पहले न चाह कर भी यादें सताती थी
रोकी यादों को पास न आओ वो आती थी
यादों को याद करती अब , याद न आता कुछ भी
अपने आपको इतना अधिक व्यस्त मैं पाती थी।।
अब वक्त ही नहीं मिलता
कभी समय मिलता तो लिख लेती जज़्बात
कभी दर्द तो , कभी श्रृंगार रस की बरसात
वक्त ही सब खेल रहा अपने हिसाब से चलाए
समझी एक से दिन नहीं होते समझाऊं यही बात।।
अब वक्त ही नहीं मिलता
आज सोचा पहले कलमकार हूं कुछ लिख लूं
समाज सेविका का आनंदित रस बाद में चख लूं
साहित्यकार हूं तो साहित्य ना भुलाना है मुझे
यही सोच समझ कर साहित्य के लिए वक्त से हक लूं।।
— वीना आडवाणी तन्वी