कविता

गणपति-वंदन

गणपति-गणदेव वंदन,
प्रेम से स्वीकृत करो,
फूल-से कोमल ह्रदय को,
प्रेम से वर्धित करो.
हम तो हैं संतान तेरी,
तू पिता संसार का,
दे रहा उपहार पल-पल,
तू हमें भी प्यार का.
करता है उपकार सब पर,
करुणा हर पल कर रहा,
आ गया जो पास तेरे,
उसकी झोली भर रहा.
ध्यान तेरा जो करे,
तेरा प्रभु हो जाएगा,
तेरा चिंतन जो करे,
चिंता-रहित हो जाएगा.
चाहते हरदम तुम्हारे,
नाम से ही प्यार हो,
ध्यान ही मंज़िल हमारी,
ध्यान ही उपहार हो.
ऐसे ही हर सांस में,
सबके समाना हे प्रभु,
अपने चरणों में मुझे,
हर पल रमाना हे प्रभु.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244