मुक्तक/दोहा

मुक्तक

जब कभी थे काम के, कद्र अपनी थी बहुत,
गर्दिशों का दौर आया, हासिए पर हैं बहुत।
कर दिया हमको तन्हां, बुढ़ापे के इस दौर में,
जंग लगा बेबस हुए, ठुकराए गए हम बहुत।
— डॉ अ कीर्तिवर्द्धन