मेरा पागलपन
कितना खुश था अभी कल तक
हवा में उड़ता रहा सोच सोचकर
जो मेरे हिस्से में न होकर भी
अनायास मिल गया था मुझे।
पर ये शायद विडंबना ही तो है
या इसे मैं अपना दुर्भाग्य कहूँ
आप सब मिलकर सोचिए
मैं तो अपनी पीड़ा बयां कर रहा हूँ।
बस! आप भी सुनिए और महसूस कीजिए
अचानक एक तूफान आया
मेरी खुशियाँ समेट ले गया,
बिना किसी संकेत, पूर्व सूचना के,
असहनीय दर्द दे गया।
लेकिन सच यही है कि
दर्द ये मैंने सहा है
और अब भी उसका दर्द सह रहा हूँ
आँसुओं संग जी रहा हूँ,
पर खता मेरी क्या थी ऐसी?
यह समझ नहीं पा रहा हूँ।
अब तो इस जीवन से भी डर लगता है
क्योंकि रोज रोज, पल पल
तिल तिल कर जी रहा हूँ
या शायद मर रहा हूँ।
पर दोष किसी को देना
मेरी मंशा ही नहीं है,
किसी को एक पल को भी ठेस पहुंचे
ऐसा मैं सोचता भी नहीं हूँ।
इसीलिए शायद औरों के लिए जीता हूँ
अपनी फिक्र में उलझता नहीं हूँ,
फिर आपकी गालियाँ ही सुनता हूँ।
मुझे भी अब लगता है
मै पागल हो गया हूँ,
पर ऐसा तो मैं स्वयं ही हुआ हूँ,
फिर दोष देने भर से क्या मिल जायेगा
जब आपका जबाव तो
सिर्फ अपने पक्ष में ही आयेगा।
तब यही अच्छा है जो मैं करता हूँ
ईश्वर की व्यवस्था पर भरोसा करता हूँ
और जैसे भी बन पड़ता है
चलता ही जा रहा हूँ,
रोता रहता हूँ, मगर बीच बीच में
अपने पागलपन पर तनिक
मुस्कुरा भी तो लेता हूँ।