धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

राष्ट्रीय सांस्कृतिक एकता का प्रतीक – गणेशोत्सव पर्व

हमारे धर्म ग्रंथ वेद,पुराण,गीता,भागवत, रामायण में भगवान श्री गणेश की विशेष स्तुति,अराधना का उल्लेख मिलता है।इसमें श्री गणेश की महिमा का उल्लेख करते हुए उनके अनेकानेक रूप,गुण,महिमा को
वंदनीय  बताया गया। भगवान श्री गणेश को सभी देवगणों में सबसे पहले पूज्य और  पूजनीय माना गया है।इसीलिए सबसे पहले इनकी पूजा अर्चना की जाती है।
श्री गणेश जी बुद्धि के देवता और
विघ्न–विनाशक
माने जाते हैं। प्रत्येक शुभ कार्य शुरू करने से पहले इनकी पूजा–अर्चना की जाती है।ताकि वह शुभ कार्य बिना किसी
विघ्न–बाधा के संपन्न हो जाए।
भगवान श्री गणेश मात्र विघ्न–बाधाओं को दूर नहीं करने वरन मानव जीवन से दुख दर्द पीड़ा भय से  मुक्ति भी दिलाते हैं।और जीवन में सुख–शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
हमारे देश में गणेश पूजा की एक अलग परंपरा रही है।जो सदियों से चली आ रही है।और इसी का पालन करते हुए हमारे हिंदू धर्म के लोग गणेश चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश का ससम्मान स्थापना करते हैं।और अगले दस दिनों तक बड़ी आस्था विश्वास के साथ इनकी पूजा–अर्चना करते हैं।
आजादी के पूर्व हमारे देश में गणेश की
पूजा–अर्चना और स्थापना एक नए कलेवर में, नई परम्परा के रूप शुरू हुई।और यह परंपरा  महाराष्ट्र मुंबई में शुरू हुई।यहां पर गणेश पूजा का एक विशेष महत्व होता है।पूरे भारत से अलग हट के यहां पर गणेशोत्सव
का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है।इसका एक विशेष कारण भी है,और वह कारण हैं यह है की यहां पर सारे जाति धर्म संप्रदाय के लोग अपनी
जाति धर्म को भूल कर सिर्फ और सिर्फ गणेश भगवान की पूजा भक्ति अराधना में डूब जाते हैं।हिंदू,मुस्लिम,सिख,ईसाई,बौद्ध, पारसी,सभी एक होकर इस गणेशोत्सव में शामिल होते हैं।एक तरह से यहां राष्ट्रीय, सांस्कृतिक एकता,सद्भावना,भाईचारा,की झलक देखने को मिलती है।
और ऐसे सांस्कृतिक गणेशोत्सव की शुरुवात
यदि किसी ने शुरू किया तो वे थे,लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी थे। जिन्होंने गणेश की पूजा को गणेशोत्सव का रूप देते हुए एक नई परम्परा की शुरुवात की।श्री तिलक जी ने गणेशोत्सव के माध्यम से भारतीय समाज में राष्ट्रीय एकता,सद्भावना,मानवीय मूल्य,स्वतंत्रता के प्रति चेतना,आदर्शों के प्रति निष्ठा,का ऐसा बीज बोया की वह एक मिसाल के रूप में स्थापित हो गई।
श्री तिलक जी ने देश की स्वतंत्रता के लिए ,हमारे देश की जनता को सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जनजागृति से जोड़ने का काम किया।
गणेशोत्सव का पर्व मात्र एक उत्सव नही है,
यह अपने अधिकारों,कर्तव्यों के प्रति सजग रहने का संदेश देता है।भगवान गणेश को इन सबका प्रतिनिधि देव माना जाता है।
और जब भी हम इनकी आराधना पूजा करते हैं तब–तब हम उनके संदेशों का  पालन करने का प्रयास करतें है।
भगवान श्री गणेश अपनी सजगता, सक्रियता और कर्तव्य निष्ठा के ही कारण एक द्वारपाल से एक गणाधिदेव ,देवों के देव,सबसे पहले पूजे जाने वाले देव गणेश बने।
इन्ही सभी बातों का ध्यान रखते हुए हमारे महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक जी ने हमारे देश की जनता में गणेशोत्सव के माध्यम से देशप्रेम और राष्ट्रीयता की भावना को जागृत किया।और उन्होंने लोकतंत्र के अधिकार और कर्तव्य की बात को बड़ी आसानी से कह दी।जो हमारे देश के लिए एक मिशाल बन गई।इस प्रकार से श्री तिलक जी धर्म आस्था के साथ–साथ राष्ट्र के प्रति हमारे कर्तव्यों,अधिकारों का बोध  भी कराया।जो आज भी हमारे भारत वर्ष के गांव नगर शहर में सांस्कृतिक,और राष्ट्रीय एकता की धूम, गणेशोत्सव में दिख ही जाती है।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578