ग़ज़ल
आग पी तो गया अब पचा कर बता।
और फिर जिन्दगी को बचा कर बता।।
दी सभी को अगर नौकरी तो सुनो ,
मैं कहाँ का हुआ यार चाकर बता।।
हाथ मेंहदी से रचना करिश्मा नहीं,
नीम की पत्तियों से रचाकर बता।।
पेड़ – पौधे झुकाना अलग बात है ,
पत्थरों की अकड़ को लचाकर बता।।
उँगलियों पर नचाता रहा देश को,
एक पुतली खुले में नचा कर बता।।
दूसरों को कुदाता रहा आग में ,
आज तू ये करिश्मा चचा कर बता।।
— गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”