बेपरवाह
वर्ष 1972 में अपना प्रेम फिल्म का आनंद बख्शी बख़्शी द्वारा लिखित गीत, कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना, छोड़ो बेकार की बातों में कहीं बीत ना जाए रैना तथा बड़े बुजुर्गों की कहावतों को व्यवहारिक जीवन में सटीक सत्यता को सिद्ध होते हुए हम अपने दैनिक जीवन में कई बार सुनते, देखते और महसूस करते रहते हैं परंतु फिर भी उनकी दी हुई सटीक सीख, प्रेरणा और मंत्रों का उपयोग नहीं करके अपनी परेशानी का सारा दोष अपने प्रतिद्वंदीयों, आस-पड़ोस, और आगे कुछ समझ नहीं आया तो ईश्वर अल्लाह पर धकेल देते हैं, मेरा मानना है यह हमारी सबसे बड़ी मूर्खता है। बड़े बुजुर्गों की कहावतें- आप बैल मुझे मार, दूर के ढोल सुहाने लगते हैं, एक उंगली दूसरे पर उठाते ही तीन उंगलियां तुम्हारी तरफ उठती है, अपनी मस्ती में मस्त रहो सहित अनेक कहावतें जीवन में सटीक बैठती है क्योंकि हमारे दैनिक जीवन में अनेक साधारण बातें और संदेहर हमारे दिनचर्या में परेशानी खड़ी करते हैं इसलिए उनसे बचनें हमें बेपरवाही मंत्र का उपयोग करना होगा। इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से बेपरवाह होने और उसके गुण दोषों पर चर्चा करेंगे।बात अगर हम चिंता, परेशानी को दूर करने बेपरवाह होने का अस्त्र अपनाने की करें तो,लगातार चिंता और संदेह हमें प्रतिदिन परेशान कर सकते हैं और हमारे तनाव का स्तर भी बढ़ा सकते हैं। यह भावनाएँ और उच्च तनाव स्तर हमको कुछ भी करने से और अपनी पसंद की चीजों का आनंद लेने से बाधित कर सकती हैं। अपने मस्तिष्क का थोड़ा सा ध्यान रखिए कि निष्पक्षता भावनात्मक प्रतिबद्धता के समय ही सबसे अच्छी तरह से प्रदर्शित होती है। यह अपनी भावनाओं को छुपाने और लोगों को भयभीत न होने देने की सर्वश्रेष्ठ विधि है। यह आपको किसी मज़बूत तथा पाषाण जैसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित कर सकती है।लोगों की भावनाओं के प्रति संवेदनशील रहिए। बहुत अधिक बेपरवाही से लोगों को चोट पहुँच सकती है और वे आपसे दूर हो सकते हैं। दुर्भाग्यवश, यह आपके प्रिय को भी, यदि आप सावधान नहीं रहे तो, आपसे दूर कर सकता है करके हम बेपरवाह बन सकते हैं और चीजों को स्वयं को परेशान नहीं करने दे सकते हैं। हम तो मज़बूत चीजों से बने हैं और हमको कुछ भी गिरा नहीं सकता है।
बात अगर हम बेपरवाह नहीं होने याने परवाह करने वाले की करें तो, वे लोग जो उतने बेपरवाह नहीं हैं (आप कह सकते हैं, परवाह करने वाले), अपने जीवन को दूसरों की कही हुयी विधि से बदलने में व्यस्त हैं। वे दूसरों के द्वारा स्वीकार किए जाने, और प्रेम किए जाने के लिए इतना कठोर प्रयास करते हैं ताकि सब कुछ बिल्कुल वैसा ही हो जाये। संक्षेप में, वे बहुत अधिक परवाह करते हैं।और उन चीज़ों के बारे में, जिनका कुछ अर्थ ही नहीं है। इस जीवन शैली की, और दूसरों के जीवन की हम नक़ल न करें, अपनी शैली से जीवन जिएँ। हमें दूसरों के कहने की तो परवाह तो बिल्कुल नहीं करना चाहिए- हमें वही करना चाहिए जिससे हमेंको प्रसन्नता मिले।
बात अगर हम बेपरवाही में अपनें शारीरिक लैंग्वेज को ढालने की करें तो, हमें अपने हाव भाव का ध्यान रखिए: कभी कभी हम चाहे जितनी शांति और धैर्य की बातें करें, हमारे हाव भाव से रहस्य खुल जाता है। हमारी आवाज़ तो निकलती है, कोई बात नहीं। चिंता मत करिए, मगर हमारे कानों से धुआँ निकल रहा होता है और मुट्ठियाँ बंधी होती हैं। यह कोई छुपी बात नहीं होगी क्योंकि सभी लोग असलियत तो समझ ही जाएँगे। इसलिए जब हम बेपरवाही से बोल रहे हों, तब सुनिश्चित करें कि हमारा शरीर भी उसका समर्थन करे। हमारा शरीर कैसे स्थापित होगा, यह हमारी परिस्थिति पर निर्भर करेगा। जब तकहम चिंतित और परेशान (और बेपरवाह नहीं) होंगे तब मुख्य बात यह होगी कि हमारी मांसपेशियाँ तनी होंगी। यदि हम सोचते हैं कि हमारे हाव भाव से बात खुल जाएगी, तब अपने शरीर को ऊपर से नीचे तक देखिये और जानबूझ कर यह तय करिए कि हर भाग शांत रहे। यदि ऐसा नहीं हो, तब उसे ढीला करिए। मानसिक बेपरवाही यहीं से आएगी।
बात अगर हम बेपरवाह पर रहीम के दोहे और उसके अर्थ की करें तो
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बे परवाह।
जिनको कछू न चाहिए, वे साहन के साह।। इसका अर्थ:
चिंताओं का मूल है मन में नई-नई कामनाओं का पैदा होना। एक कामना पूरी होती है तो दूसरी कामना सिर उठाती है। कामनाओं को कैसे सिद्ध किया जाए, इसी चिंता में मनुष्य घुलता रहता है। वह जीवन को पूरी समग्रता से नहीं जी पाता। वह आजीवन कामनाओं का दास बना रहकर लोभ, मोह, माया, क्रोध व काम में फंसा रहता है। उसका एक पल भी शांतिपूर्वक व्यतीत नहीं होता। इसके विपरित रहीम कहते हैं, यदि कामना न रहे, चाह का लोप हो जाए तो चिंता से मुक्ति मिल जाती है। सिर से सारा बोझ उतर जाता है और मन निश्चिंत और लापरवाह हो जाता है। सच तो यह है कि जिनको कुछ नहीं चाहिए होता, जो कामना रहित होते हैं, वे शाहों के भी शाह होते हैं।
बात अगर हम बेपरवाह होने के अर्थ को स्वयं को गंभीरता से ना लेने, हर स्थिति में हास्य खोजने की करें तो,स्वयं को (या किसी भी और चीज़ को) बहुत गंभीरता से नां लें: सारा जीवन तब कहीं अधिक सरल हो जाता है जब हमर इस निर्णय पर पहुँच जाते हैं कि कोई भी बात इतनी बड़ी नहीं है। हम सभी इस धरती पर एक रेत के कण के समान हैं और यदि सब कुछ हमारे हिसाब से ठीक नहीं हो रहा है, तब मान लीजिये कि ऐसा ही होना था। बुरी चीज़ें होंगी और अच्छी चीज़ें भी अवश्य ही होंगी। इसके बारे में परेशान क्यों हुआ जाये? हर स्थिति में हास्य खोजिए- बेपरवाह होने का अर्थ यह नहीं है कि आप प्रसन्न नहीं रहेंगे, इसका अर्थ है कि आप जल्दी ही परेशान, नाराज़, या तनावग्रस्त नहीं हो जाएंगे। और यह किया कैसे जाएगा? जब प्रत्येक वस्तु हास्यप्रद हो, तब यह अच्छी शुरुआत होगी। जिस प्रकार से हर बात में कुछ अच्छी बात अवश्य होती है, अधिकांश चीज़ों में हास्य का पुट भी होता ही है।अपनी ढेरों भावनाओं का प्रदर्शन मत करिए: बेपरवाह की परिभाषा ही है कि वह लगभग 24/7 धैर्यवान और शांत बने रहें। आप हल्की फुली रुचि या प्रसन्नता प्रदर्शित कर सकते हैं-या थोड़ी निराशा और परेशानी भी – परंतु अंदर से आपमें गहरी झील जैसी जैसी शांति बनी रहती है। इसका अर्थ यह नहीं है कि आप भावना रहित या ठंढे रहेंगे, यह तो शांत रहने की बात है। साथियों बात हम बेपरवाह होने पर ध्यान रखने वाली बातों की करें तो, निष्पक्षता भावनात्मक प्रतिबद्धता के समय ही सबसे अच्छी तरह से प्रदर्शित होती है। यह अपनी भावनाओं को छुपाने और लोगों को भयभीत न होने देने की सर्वश्रेष्ठ विधि है। यह हमको किसी मज़बूत तथा पाषाण जैसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित कर सकती है। लोगों की भावनाओं के प्रति संवेदनशील रहिए। बहुत अधिक बेपरवाही से लोगों को चोट पहुँच सकती है और वे आपसे दूर हो सकते हैं। दुर्भाग्यवश, यह आपके प्रिय को भी, यदि आप सावधान नहीं रहे तो, आपसे दूर कर सकता है
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि बेपरवाह, साधारण बातों, तानों और संदेह से खुद को परेशानी से बचाने बेपरवाह होना एक सटीक मंत्र हैं। साधारण बातों से आए हाईटेंशन को भगाने अपने मस्तिष्क का थोड़ा पुनर्केंद्रीकरण कर बेपरवाही रूपी अस्त्र का प्रयोग जरूरी है
— किशन सनमुखदास भावनानी