कविता

आपका अहं

कब तक मौन धारण किए रहूं?
आप तो नाराज हो जायेंगे
मगर मैं क्या करुँ?
अब तक तो मैं आपको पढ़ता रहा
आदतों से आपके मैं स्वयं ही कुढ़ता रहा,
आपकी नाराजगी के डर से डरता रहा।
मगर अब आपकी आदतें
असहनीय लगने लगी हैं,
आपके भविष्य की कठिनाइयों का डर
चिंतित भी अब करने लगी हैं।
यूँ तो आप बहुत अच्छे हो
मिलनसार, व्यवहार कुशल
संवेदनशील भी हो,
मगर आपके आत्मविश्वास में
आपका अहं झलकता है,
शायद ये आपकी विवशता हो,
या खुद पर खुदा बनने का
भूत सा सवार लगता है।
जो भी है अभी मौका है
आपके पास संभलने का,
अच्छा है सँभल जाइए
ऐसा न हो कि अपने अतिरेक में
अपनों से न दूर चले जाइये।
भगवान करे ऐसा न हो
मगर यदि कहीं ऐसा हो गया तो
आप कहीं के नहीं रह पायेंगे,
आपके आसपास भी कोई नहीं होगा
तब आप सिर्फ अकेले रह जाएंगे।
तब क्या करेंगे जनाब
जब आप लोगों से आस लगाएंगे
और लोग आपको दूर से ही देख
रास्ता बदल कर निकल जायेंगे,
आपके हाथ से आपके अहं के
तोते भी उड़ जायेंगे,
तब तब और तब आप
सिर्फ हाथ मलते रह जायेंगे,
ठगे से रह जाएंगे और पछताएंगे।
आपके अपने जब दूर दूर तक
नजर ही नहीं आयेंगे,
तब आपका अहं ही आपको धिक्कारेगा
आपको आइना दिखा चिढ़ाएगा
आपकी बेबसी का खुला मजाक उड़ाएगा।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921