ख़्वाब
कल रात आया
ख़्वाब कुछ हसीन था।
आसमान के तारे
आकर धरती पर टिमटिमा रहे थे
नदिया संग खिलखिला रहे थे।
यह हसीन नज़ारा देख
चाँद भी आसमान पर रह न पाया।
आया जैसे ही वह धरती पर
संग अपनी शीतलता भी ले आया।
धरा उससे मिलकर चहक उठी
प्रकृति महक़ उठी।
हुआ सवेरा तो देखा हमने
पहाड़ों की ओट से छिप-छिपकर
सूरज मुस्कुराता कह रहा था,
देखा जो तुमने वह ख़्वाब था,
हाँ, यह सच में वह हसीन ख़्वाब ही था।
रचना – स्वरचित / मौलिक
रचयिता – आचार्या नीरू शर्मा
शिक्षिका / लेखिका
स्थान – कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश ।