पर्यावरण

गौवंश पर प्रकोप “लम्पि वायरस”

कोरोना त्रासदी के बादअब एक बार पुनः जनजीवन को प्रभावित करने वाला एक वायरस भारत के कई राज्यों में हाहाकार का कारण बना हुआ है। यह वायरस “लम्पि वायरस” के नाम से जाना जाता है और दुधारू पशुओं में संक्रमण व उनकी मृत्यु का कारण बन रहा है। खासकर गोवंश इससे बहुत अधिक प्रभावित है । भारत के 15 से अधिक राज्यों में लम्पि वायरस का संक्रमण तेजी से फैला है इस संक्रमण के फैलने का कारण पशुओं का साथ में रहना, दूषित भोजन, दूषित पानी का सेवन करना, मच्छर, मक्खी, जूं आदि के द्वारा भी यह वायरस एक से दूसरे पशु में संक्रमित होता है। इसके कारण पशु को प्रारंभिक रूप में बुखार रहता है उसके बाद उसके पूरे शरीर में गांठ बनने लगती है, दुधारू पशु की दूध देने की क्षमता अत्यंत कम हो जाती है, पैरों में सूजन आना व खड़े ना हो पाना, इस कमजोरी के कारण कई पशु बैठ जाते हैं, वापस खड़े ही नहीं हो पाते। पाचन संबंधी समस्या के कारण वह चारा भूसा अन्य भी कुछ ना खाकर अंत में कुछ दिनों बाद उनकी मृत्यु हो जाती है। यदि भारत में देखेंगे तो राजस्थान व गुजरात राज्य में इस वायरस का प्रकोप बहुत ज्यादा है। इससे बचाव के लिए अभी तक कोई टीका एंटीडोट नहीं बन पाया, सामान्य एंटीबायोटिक एंटीऑक्सीडेंट घरेलू उपचार से ही पशुओं की चिकित्सा गोपालक व चिकित्सक कर रहे हैं। फिर भी संक्रमण इतना अधिक है कि हजारों पशुओं की मृत्यु प्रतिदिन हो रही है, हालात यह है कि अब स्थिति प्रशासन से भी नहीं संभल रही। यूं तो मनुष्य को किसी भी तरह के परिस्थिति में माननीय दृष्टिकोण बनाए रहना चाहिए, जिस प्रकार हमने देखा कोरोना वायरस संक्रमण के समय भी कई सामाजिक व अनुषंगिक संगठन संक्रमित लोगों आश्रित लोगों के सहयोग के लिए आगे आए तथा हर तरह से उनका सहयोग किया। तो यह आवश्यक है कि पशुओं में फैले इस संक्रमण में भी हम उनकी देखभाल करें व उनकी चिकित्सा तथा घरेलू उपचार में सहयोगी बने। यह रोग मनुष्यों में संक्रमित नही होगा, यह AIMS ने अपने अनुसंधान से बताया है। इसके विपरीत राजस्थान के बीकानेर के पास हजारों मृत पशुओं को खुले में फेंक दिया गया। उनके मृत शव से आने वाली दुर्गंध के कारण आसपास का लगभग 10 किलोमीटर का क्षेत्र संक्रमित और दुर्गंध युक्त हो चुका है जबकि गोवंश को प्रशासन द्वारा गड्ढे करके उसमें गाड़ना चाहिए था, जिसके कारण संक्रमण फेलने से रोकथाम होती। साथ ही मृत पशुओं के शव के कारण भविष्य में होने वाली बीमारी से भी बचाव होता। यह आवश्यक है कि पशु यदि सामान्य रूप से भी मरते हैं तो उन्हें भूमि दाह अर्थात गड्ढा करके जमीन में गाड़ना चाहिए। अति आवश्यक है शासन प्रशासन सामाजिक संगठन तथा गोपालक भी मृत पशुओं को भूमि दाह के रुप में अंतिम संस्कार करें, विपरीत समय ही मानव के मानवीय दृष्टिकोण की परीक्षा लेने वाला होता है। आइए गौवंश के इस कठिन समय में उनके रक्षक बनें।

— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश