कविता

ख़्वाब

कल रात आया
ख़्वाब कुछ हसीन था।
आसमान के तारे
आकर धरती पर टिमटिमा रहे थे
नदिया संग खिलखिला रहे थे।
यह हसीन नज़ारा देख
चाँद भी आसमान पर रह न पाया।
आया जैसे ही वह धरती पर
संग अपनी शीतलता भी ले आया।
धरा उससे मिलकर चहक उठी
प्रकृति महक़ उठी।
हुआ सवेरा तो देखा हमने
पहाड़ों की ओट से छिप-छिपकर
सूरज मुस्कुराता कह रहा था,
देखा जो तुमने वह ख़्वाब था,
हाँ, यह सच में वह हसीन ख़्वाब ही था।

रचना – स्वरचित / मौलिक
रचयिता – आचार्या नीरू शर्मा
शिक्षिका / लेखिका
स्थान – कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश ।

आचार्या नीरू शर्मा

नाम आचार्या नीरू शर्मा है। मेरी जन्मभूमि देवभूमि हिमाचल प्रदेश है । मैं एक शिक्षिका व लेखिका हूँ । शिक्षा - एम.ए./आचार्या/ बी.एड। शिक्षिका के रूप में कार्य करते हुए 15 साल हो गए हैं । लेखन से जुड़े हुए लगभग 10 साल हो गए है। कुछ साहित्यिक मंचों से जुड़ी हूँ जिन पर रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं व सम्मान पत्र प्राप्त हुए हैं। दो साझा काव्यसंग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। मेरी रुचि - पठन/लेखन/भ्रमण/बागवानी आदि में है।