तर्पण
अर्पण तर्पण अछत सर्मपण
गंगाजल कीजीये स्वीकार
अंजली भर श्रद्धा सुमन
लीजीये कूल पितर सरकार
तेरी आर्शिवाद से फलीभूत हुई
तेरी ही वंश वृक्ष की बड़ी संसार
सदैव रखना हाथ अपनों पे अपना
देना अपना वरदान अपार
निरोग रहे तन मन व उपवन
जो दिया है वशंज को उपकार
छ्तरी बन वंशज की रक्षा करना
देना नित्य नया नया उपकार
तुम हो कुलदेवा तुम महादेवा
तुम हो कुल का पालनहार
हर पितृपक्ष में करूँ तेरा तर्पण
वरदान दीजीये मेरे सरकार
देवा हो देवा ओ पितरदेवा
भरपूर रहे सदैव घर का भंडार
धन वंश लक्ष्मी व गृह लक्ष्मी
से भरा पूरा हो अपना घर बार
ना कोई ईष्या ना कोई क्लेश
ना रहे किसी से कोई भी द्वेष
मेरे पूर्वज पूजनीय अग्रज
हँसता खेलता रहे परिवेश
— उदय किशोर साह